________________
अनेकान्त/२
वन्दनीय साधु
जो संजमेसु सहिओ आरम्मपरिग्गहेसु विरओ वि।
सो होइ वंदणीओ ससुरासुरमाणसे लोए।। जो संयमों से सहित है तथा आरम्भ और परिग्रह से विरत है वही सुर, असुर एवं मनुष्य सहित लोक में वन्दना करने योग्य है।
जे बावीस परीसह सहति सत्तीसएहिं संजुत्ता।
ते होंति वंदणीया कम्मक्खयणिज्जरा साहू।। जो बाईस परिषह सहन करते हैं, सैकड़ों शक्तियो से सयुक्त है तथा कर्मो की निर्जरा और क्षय करने वाले वे साधुवंदनीय होते हैं।
पंचमहव्वयजुत्तो तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होई।
णिग्गंथमोक्खमग्गो सो होदि ह वंदणिज्जो य।। जो पांच महाव्रत से युक्त और तीन गुप्तियों से सहित है वह सयमी होता है वही निग्रंथ मोक्षमार्ग है और वही वन्दना करने योग्य है।
णिच्चेल पाणिपत्तं उवइलैं परमजिणवरिंदेहि।
एक्को वि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे।। परमोत्कृष्ट श्री जिनेन्द्र भगवान ने वस्त्र रहित-दिगम्बर मुद्रा और पाणिपात्र का जो उपदेश दिया है वही एक मोक्ष का मार्ग है और अन्य सब अमार्ग हैं।
सूत्र पाहुड़