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________________ अनेकान्त/२२ संस्नापितस्य घृतदुग्धदधीक्षु रसैः, सर्वाभिरोषधिभिरर्हत उज्वलाभिः। उद्वर्तितस्य विदधाम्यभिषेकमेलाकालेयकुकुमरसोत्कटवारिपूरैः।। (घी, दूध, दही, इक्षुरस से स्नान कराने के पश्चात् उबटन लगाकर अब मैं एला, कालेय और कुकुम के रस से मिश्रित उज्ज्वल सर्वोषधि रूप वारि पूर से अभिषेक करता हू) सचित्त अचित्त दोनो ही पदार्थो से पूजा करना आगम सम्मत है। ध्यान केवल यह रखना होता है कि हिसा से दूर रहा जाए । यह सब समर्पण-निर्वपण हम कर रहे है जिसको बुलाया उसके लिए नही, केवल स्वहित के लिए। आशाधर धर्मामृत (सागार) मे लिखते हैवार्धारा रजसः शमाय पदयो : सम्यक्प्रयुक्तार्हतः सद्गन्धस्तु तनुसौरभाय विभवाच्छेदाय सन्त्यक्षताः। यष्टुः स्रग्दिविस्रजे चरुरुमा स्वाम्याय दीपस्त्विषे धूपो विश्वदृगुत्सवाय फलमिष्टार्थाय चााय सः।। (अर्हत के चरणों में विधिपूर्वक अर्पित जल की धारा पापो की शान्ति के लिए, उत्तम चन्दन पूजक के शरीर की सुगन्ध के लिए, अक्षत (अखण्ड तन्दुल) वैभव के नष्ट न होने के लिए, फूलो की माला स्वर्ग मे होने वाली मन्दार माला की प्राप्ति के लिए, धूप पूजन के परम सौभाग्य के लिए, फल इष्ट अर्थ की प्राप्ति के लिए और अर्ध्य पूजा विशेष के लिए है) इस पर प० कैलाशचन्द्र का निष्कर्ष है कि मध्य काल मे पूजा मे लौकिक फल की भावना थी। उत्तर काल मे आध्यात्मिक रूप देकर पूजा का महत्व बढ़ाया गया है। उनका यह भी कहना है कि आशाधर के पहले के ग्रथो में अर्ध्य चढ़ाने का कथन भी नही है। अब आध्यात्मिक उपलब्धियो के सिलसिले मे जल जन्म-जरा-मृत्यु निवारण के लिए, चन्दन ससारताप विनाश के लिए, अक्षत अक्षय पद पाने के लिए, पुष्प कामबाण विध्वस के लिए, नैवेद्य क्षुधा रोग विनाश के लिए, दीप मोहाधकार विनाश के लिए, धूप अष्ट कर्म दहन के लिए, फल मोक्ष फल के लिए और अर्ध्य अनर्घ पद (मोक्ष पद) पाने के लिए अर्पित किया जाता है। किसी अतिथि के सादर स्वागत मे जो वस्तु समर्पित की जाए उसे अर्ध्य कहते है। अनर्घ पद का अर्थ है वह पद जिसका मूल्य नही आका जा सकता। हमारे नवीन कवियो ने इस समर्पण-निर्वपण को यो बदल दिया है - वे चढ़ाते है जल ज्ञानावरणीय के क्षय के लिए, चदन दर्शनावरणीय-वेदनीय के क्षय के लिए, अक्षत मोहनीय के क्षय के लिए, पुष्प आयुकर्म के विनाश के लिए, नैवेद्य नाम कर्म के विनाश के लिए, दीप गोत्र कर्म के क्षय के लिए, धूप अतराय के नाश के लिए,
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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