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________________ अनेकान्त/4 नायक था। वह जैन-ब्राह्मण था और उसका कुलधर्म जैन था । जैन ग्रन्थ आवश्यक चूर्णि की नियुक्ति (भाग 3, पृष्ठ 526) में चाणक्य का जीवन प्रसंग प्राप्त है। वह परम्परागत जैन होने के साथ-साथ जैन तत्वज्ञान सम्पन्न और परम सन्तोषी था तथा उसी ने अपने बुद्धि बल का उपयोग करके चन्द्रगुप्त को राजसिंहासन पर बैठाया और मगधराज्य का विस्तार किया। ऐसे ही कथन जैन ग्रन्थ नन्दिसूत्र, उसकी टीका और उत्तराध्ययन की टीका में भी प्राप्त होते हे। 13 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री हेमचन्द्राचार्य ने भी अपनी रचना "परिशिष्ट पर्व" के आठवे सर्ग में चाणक्य का जो जीवन परिचय दिया है, वह भी इसी के समरूप है। इसमें चाणक्य के विवाह का भी कथन है। तथा उसके सम्राट चन्द्रगुप्त का मत्रीश्वर होने का भी कथन है। ब्राह्मण शब्द आज सनातनी हिन्दू का बोधक है परन्तु प्राचीन युग मे ऐसा नहीं था । व्यक्तिगत कर्म द्वारा लोग वर्गों में विभाजित थे। वर्ण विभाजन जन्मना नहीं कर्मणा था। अनेक ऋषि शूद्र वर्ण मे जन्मे थे। जिन्होंने अपनी तपस्या के फलस्वरूप ऋषिपद प्राप्त किया था। ऋषि विश्वामित्र भी तो जन्मना क्षत्रिय था। सभी जैन तीर्थकर जन्मना क्षत्रिय थे किन्तु उनके अधिकाश गणधर ब्राह्मण थे। सभी जैन भट्टारक ब्राह्मण थे। अधिकाश जैन मुनि और यति जन्मना ब्राह्मण ही थे और आज भी है। ये सभी "जैन-ब्राह्मण" की कोटि मे आते है। इसी प्रकार, जैन ब्राह्मण-कुलोत्पन्न चाणक्य का भी जैनेतर साहित्य मे जहा भी ब्राह्मण के रूप में उल्लेख हुआ है, वहा सर्वत्र उससे जैन-ब्राह्मण उद्दिष्ट है चाणक्य जैनाचार्य हुये थे और अपने 500 शिष्यो सहित उन्होंने देश विदेशों मे बिहार करके दक्षिण के वनवास नामक देश मे स्थित क्रौचपुर नगर के निकट प्रायोपगमन सन्यास ले लिया था। उन्हें जैन धर्म से अगाध प्रेम था। चन्द्रगुप्त के साधु होने की चर्चा विल्स कृत "हिन्दू ड्रेमेटिक वर्क्स में भी आई है। (भूमिका भाग, 5810-26) प्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री विसेन्ट स्मिथ ने अपनी आक्सफोर्ड हिस्ट्री आफ इडिया के पृष्ठ 65 पर लिखा है कि “चन्द्रगुप्त ने राजगद्दी एक कुशल ब्राह्मण की सहायता से प्राप्त की थी, यह बात चन्द्रगुप्त के जैन धर्मावलम्बी होने के विरुद्ध नहीं पड़ती।" जैन नन्दिसूत्र में सर्वप्रथम चाणक्य का उल्लेख मिलता है। जो पांचवीं शताब्दी ईसवी की रचना है। वे जैन आचार्य स्थूलभद्र शकराल के ज्येष्ठ पुत्र और चन्द्रगुप्त के समकालीन और भाग्य विधाता थे। चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् चाणक्य कुछ समय तक सम्राट बिन्दुसार के महामात्य रहे । बाद मे श्रमण साधु बनकर आत्मचिन्तन में लीन हो गये। जैन ग्रथ आराधना हरिषेण कथा कोष और आराधना कथा कोष आदि मे चाणक्य के श्रमण दीक्षित होने और 500 श्रमणों के साथ तपस्या करके स्वर्गस्थ होने का उल्लेख है। यही उल्लेख हेमचन्द्राचार्यकृत परिशिष्ट पर्व में है। उनके जीवन के उत्तरार्धकाल के विषय में इतिहासकारो को इससे अधिक जानकारी प्राप्त नही है। चाणक्य के अर्थशास्त्र की प्राप्ति 1905 में हुई तथा उसके खोजकर्ता और २. आराधना कथा कोष (भग ३, पृष्ठ ५१-५२) नेमिदत्त।
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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