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________________ अनेकान्त/35 चाम में मढ़ी देह, तासौ कहा तेरौ नेह, मेरो भयौ है संदेह, या सूं कहा प्रीति करी है। असुचि अपावन घिनन कृमिनि निहार, पिव पिंजर पुरस मुत्र भरी है। ता मैं तुम प्रभ हंस की सी कलोल करै, समुझत नाहि तेरी कौन मति हरी है। सदा तू अकेलो एक भेस धरे तै अनेक भयो न विवेक तेरो काहा भटकतु है। इंद भयो चंद भयो जग में नरेन्द्र भयो कहत 'विनोदीलाल' जपो नवकार माल, श्रावक जनम पायौ आई सुभ घरी है। 1. श्री मल्लिनाथ जैन (पूर्व मुख्य अभियंता, दिल्ली नगर निगम) अध्यक्ष 2. डॉ० गोकल प्रसाद जैन उपाध्यक्ष 3. श्री बाबू लाल जैन, वक्ता 4. श्री सुभाष जैन महसचिव 5 श्री विमल लाल जैन सचिव 6 श्री धनपाल सिंह जैन कोषाध्यक्ष 7. श्री शान्ति प्रसाद जैन सदस्य 8. श्री नन्हें मल जैन सदस्य 9. श्री शीलचन्द्र जैन (जौहरी) सदस्य 10. श्री भारत भूषण जैन (एडवोकेट) प्रकाशक अनेकान्त सदस्य 11 श्री चक्रेश कुमार जैन सदस्य 12 श्री विनोद कुमार जैन (I.A.L.) सदस्य 13. श्री महेन्द्र कुमार जैन (पूर्व पार्षद) सदस्य 14 श्री श्रीपाल जैन सदस्य 15 श्री रुपचन्द्र कटारिया सदस्य 16 श्री हुकुमचन्द्र जैन 17 श्री सुमतप्रसाद जैन सदस्य 18. श्री विनोद कुमार जैन (कागजी) 19. श्री जगदीश प्रसाद जैन सदस्य 20. श्री लालचन्द जैन (एडवोकेट) सदस्य सदस्य
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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