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अनेकान्त/19
परवार जैन समाज का इतिहास : कुछ शोधकण
-डॉ. कस्तूरचन्द्र 'सुमन' जैन साहित्य के इतिहास भिन्न-भिन्न लेखकों के जैसे प्रकाशित हुए है वैसे जैन उपजातियों के इतिहास न समग्र रूप से प्रकाशित हुए और न पृथक-पृथक रूप से। जैन उपजातियों का प्रामाणिक इतिहास लिखे जाने की अब आवश्यकता अनुभव होने लगी है। पर्युषण में मुझे इटावा जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। वहाँ लंमेचू जाति का इतिहास पढने को मिला, अति प्रसन्नता हुई।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे उसके परिवर्द्धन की संभावनाएं हैं। प्रामाणिकता की दृष्टि से सर्वप्रथम पुस्तक पढने में आयी है--- डॉ कस्तूरचन्द्र कासलीवाल" द्वारा लिखित एवं सम्पादित "खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास-प्रथम खण्ड-इतिहास खण्ड। यह पुस्तक पट्टावलियो, अभिलेखों और पाण्डुलिपियों के साक्ष्य में लिखी गयी है। लेखक की स्वयं की अभिरुचि, ऐतिहासिक दृष्टि और शोध-खोज की लगन सराहनीय है।
दूसरी पुस्तक हमारे समक्ष है “परवार जैन समाज का इतिहास | इसके लेखक हैं स्वर्गीय यशस्वी विद्वान् सिद्धान्ताचार्य प फूलचन्द्र शास्त्री और विशिष्ट सहयोगी एवं कार्यकर्ता विद्वान् है- डॉ देवेन्द्रकुमार शास्त्री तथा डॉ कमलेश कुमार जैन । इस ग्रन्थ की 564 पृष्ठीय सामग्री दो भागों में विभाजित की गयी है।
1 इतिहास विभाग 2 वर्तमान परवार जैन समाज का परिचय । । इनमें प्रथम विभाग प्रथम तीन खण्डों (पृष्ठ 1 से 198 तक) मे समाप्त हुआ है और दूसरा विभाग चतुर्थ से सप्तम खण्ड (पृष्ठ 199-564) में।
प्रकाशकीय पृष्ठ चार से विदित होता है कि इतिहास खण्ड के व्यवस्थापन का कार्यभार डॉ देवेन्द्र कुमार शास्त्री को और ग्रन्थ मुद्रण के साथ चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ खण्ड की सामग्री के संकलन एवं व्यवस्थान का गुरुतर दायित्व डॉ कमलेश कुमार जैन को सौंपा गया था। दोनों मनीषियों ने निष्ठा पूर्वक कार्य किया है। उभय विद्वान सामाजिक सम्मान के पात्र हैं।
. डॉ कमलेश कुमार जैन से वाराणसी प्रवास में इस पुस्तक के पृष्ठ 120 में उल्लिखित पार्श्वनाथ प्रतिमा के सन्दर्भ में विचार विमर्श हुआ था । डॉ. जैन ने मुझे भेलूपुर स्थित मन्दिर में ले जाकर उक्त प्रतिमा के दर्शन कराये थे तथा पुस्तक में प्रकाशित लेख भी प्रतिमा की आसन में उत्कीर्णं दिखाया था। इससे प्रमाणित होता है कि डॉ जैन ने स्वर्गीय पं. फूलचन्द्र जी सिद्धान्त शास्त्री के सामीप्य में