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________________ अनेकान्त / 2 'समयसार की कुछ गाथाएँ' गाथा : वंदित्तु सव्वसिद्धेधुवमचलमणोपमं गई पत्ते । वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवली भणियं । ।1 ॥ ॥ जीवो चरित्तदंसणणाणद्वियं तं हि ससमयं जाण । पुग्गलकम्म पदेसट्ठियं च तं जाण परसमयं । 12 11 एयत्तणिच्छयगयो समयो सव्वत्थ सुंदरो लोए । बंध कहा एयत्ते तेण विसंवादिणी तं एयत्त वित्तं दायहं अप्पणो जदि दाज्ज पमाणं चुक्किज्ज छलं ण घेत्तव्वं । |5|| णवि होदि अप्पमत्तो ण पमत्तो जाणओ दु जो भावो । एवं भणति सुद्धं णाओ जो सो उ सो चेव 11611 होई । । 3 ।। सविहवेण । - प्रातः स्मरणीय पूज्य पं गणेशप्रसाद जी वर्णी विद्वज्जगत में पूर्ण सम्मान प्राप्त थे और श्रद्धान- ज्ञान - चारित्र में सिरमौर थे। बडे से बडे विद्वान् भी आगमसंबंधी शंकाओं के निरसन हेतु उनके पादमूल में जाते रहे। समयसार की चर्चा तो उनका प्रमुख विषय था- यदि दूसरे शब्दों में कहा जाय तो वे समयसार में हर दृष्टि से रच-पच गए थे। गत दिनों उनके द्वारा स्व- हस्त लिखित 'समयसार' की गाथाओ में से कुछ गाथाओं की फोटो प्रति हमें देखने को मिली। ऊपर की गाथाएँ उसी से उद्धृत हैं। इन गाथाओं में वे शब्द रूप स्पष्ट रूप से अंकित हैं, जो समयसार की अनेक प्रतियों तथा अन्य प्राचीन आगमों में उपलब्ध हैं और जिन्हें आगम-भाषा-शोधक बनने की चाह में, कुछ लोग भाषा बाह्य घोषित कर परम्परित मूल आगम-भाषा की अवहेलना में लगे हैं। पाठक विचारें कि क्या वर्णी जी ज्ञान में ऐसे लोगों से गए बीते थे? हमारी श्रद्धा में तो वे आगम के उत्कृष्ट ज्ञाता थे। इधर हम भी जो लिखते रहे हैं वह भी किसी एक स्थान से प्रकाशित किसी एक प्रति के आधार से नहीं अपितु विभिन्न आगम ग्रन्थो की भाषा के माध्यम से ही लिखते रहे हैं। जबकि पं गजाधर लाल जी व महावीर प्रसाद पांडया कलकत्ता, की प्रकाशित प्रतियो के अनुसरण करने का दावा करने वाले उसके शब्द रूपों का स्वय ही बहिष्कार कर रहे हैं। पाठक देखें- 'अनेकान्त' वर्ष 48 किरण 4 में पृष्ठ 16 पर प्रकाशित हमारा लेख । - संपादक
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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