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अनेकान्त
वर्ष ४६ वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वी.नि.सं. २५२२ वि.सं. २०५३
किरण- १
जनवरी-मार्च
ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावै?
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ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावै,
जाको जिनवाणी न सुहावै ।।
वीतराग सो देव छोड़ कर, देव कुदेव मनावे |
कल्पलता, दयालता तजि, हिंसा इन्द्रासन बावै ।। ऐसा० ।।
रुचे न गुरु निर्ग्रन्थ भेष बहु, परिग्रही गुरु भावै । पर-धन पर-तिय को अभिलाषै, अशन अशोधित खावै ।। ऐसा० । ।
पर को विभव देख दुख होई, पर दुख हरख लहावै । धर्म हेतु इक दाम न खरचै, उपवन लक्ष बहावै ।। ऐसा० ।। ज्यों गृह में संचे बहु अंध, त्यों बन हू में उपजावै ।
अम्बर त्याग कहाय दिगम्बर, बाघम्बर तन छावै ।। ऐसा० ।। आरंभ तज शठ यंत्र-मंत्र करि जनपै पूज्य कहावै ।
धाम - वाम तज दासी राखे, बाहर मढ़ी बनावै ।। ऐसा० ।।