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________________ अनेकान्त / 21 उपयुक्त कासरगोड और केरल का उससे आगे का भाग हरा-भरा, धन-धान्य से परिपूर्ण अवश्य है किंतु चुद्रगुप्त ने इस प्रदेश में मुनियों सहित रुकना उचित नहीं समझा होगा क्योंकि तटवर्ती लोग मत्स्य भोजी रहें होगे जैसे कि आजकल भी है। संभवत: इसी कारण चंद्रगुप्त का संघ कालीकट से केरल के वायनाड जिले की ओर मुड गया। वह प्रदेश बहुत सुंदर और हरा-भरा तो है किंतु ऊंचे पर्वत, असम भूमि तथ वन प्रदेश की बहुलता के कारण निवास और प्रजाजनों द्वारा कृषि के उपयुक्त नहीं लगा होगा। इस प्रदेश में कलपट्टा नामक एक स्थान के पास एक चंद्रगिरी है जहां आज भी वहां के जैन अभिषेक आदि उत्सव करते हैं। और आगे बढ़ने पर चंद्रगुप्त का संघ केरल पीछे छोड़कर मैसूर की ओर बढ़ा चला । मैसूर प्रदेश में भी चंद्रवल्ली नामक एक स्थान है जो कि ईस्वी सन के प्रारंभिक समय में एक प्रसिद्ध व्यापारिक नगर था। वहां रोम के सिक्के भी मिले थे। वैसे आंध्रप्रदेश में भी चंद्रगुप्तपट्टनामक एक स्थान है किंतु यह नाम किसी समय बाद में रखा गया जान पड़ता है । श्रवणबेलगोल पहुंचने पर उसे वहां के कम ऊंचे पर्वत, उत्तम जलवायु और उर्वर भूमि ने आकृष्ट किया होगा । अतः वह वहीं रुक गया। इस यात्रा में चुद्रगुप्त को एक-दो वर्ष का समय अवश्य लगा होगा । शायद शरीर थक जाने और भद्रबाहु के वैराग्यपूर्ण साथ के कारण चंद्रगुप्त ने मुनि दिक्षा ले ली। बिंदुसार एव चाणक्य के कारण वह साम्राज्य की ओर से निश्चिंत था ही । श्रवणबेलगोल में चंद्रगुप्त ने जिस पहाड़ी पर तपस्या की, वह पहाडी आज भी चंद्रगिरी कहलाती है। वहीं इस सम्राट का निर्वाण भी हुआ। इसी पहाडी पर चंद्रगुप्त के तथा भद्रबाहु के चरण-चिन्ह एक गुफा में अंकित है। वहां एक छोटा-सा मंदिर भी है जो कि चंद्रगुप्त वसदि कहलाता है। इसके अतिरिक्त, इन दोनों महापुरुषों की जीवनगाथा भी 90 पैनलों में पाषाण पर उत्कीर्ण है । चंद्रगुप्त के मार्ग में इतने स्थानों, पर्वतों या नदियों के नामों के साथ चंद्र जुडा होना यह सकेत देता है कि प्रजा के कष्टों को दूर करने के लिए राजकीय सुखों का त्याग कर सजनपद सुदूर दक्षिण में आने पर इस शासक के सम्मान में उपर्युक्त स्थानों के चंद्र से प्रारंभ होने वाले नाम रखे गए है। केरल में तीन नाम इस कोटि के हैं। इससे ऐसा लगता है कि चंद्रगुप्त ने केरल होते हुए ही कर्नाटक में प्रवेश किया था । विद्वानों को भौगोलिक नामों के पुरातत्व पर भी विचार करना चाहिए | अहिच्छत्र, अयोध्या, उरैयूर, श्रवणबेलगोल, तिरुच्चारणाट्टमलै,' कन्याकुमारी आदि से पर्याप्त सांस्कृतिक सूचना मिलती है। इसी दृष्टि से विचार करने पर चंद्रगुप्त मौर्य का श्रवणबेलगोल मार्ग अनुमानित किया जा सकता है। आखिर इतिहास का अधिकांश भाग अनुमान परही तो आधारित होता है और अनुमान ही विभिन्न धारणाओं को जन्म देता है।
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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