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अनेकान्त/36 पुदगल द्रव्य की पर्याय है, जो पुदगल परमाणुओं के कम्पन द्वारा उत्पन्न होता है। सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में उक्त सूत्र की टीका में शब्द के 2 भेद व्याख्यात किए हैं- भाषात्मक व अभाषात्मक । भाषात्मक शब्द अक्षारात्मक व अनक्षरात्मक के भेद से दो प्रकार का है । तथा इसी प्रकार अभाषात्मक शब्द भी प्रायोगिक एवम् वैससिक के भेद से दो प्रकार का है। मेघों का गर्जन बिजली की कड़क आदि वैनसिक हैं। प्रायोगिक शब्द के अन्तर्गत तत (ढोल तबले की आवाज) वितत (तांत वाले वीणा आदि के शब्द) घन (घण्टा, लाल आदि के ताठन के शब्द) सौषिर (बांसुरी शंख आदि के शब्द) आदि आते हैं। ___ध्वनि विज्ञान के अनुसार शब्द (ध्वनि) वस्तुओं में होने वाले कम्पन से होते हैं। उनके अनुसार दो प्रकार की ध्वनियाँ मानी जाती हैं, श्रव्य ध्वनि अश्रव्य ध्वनि। वस्तु के कणों की स्पन्दन गति 32470 आवृत्ति के स्पन्दनों को हमारे कान ग्रहण कर सकते हैं। इससे कम आवृत्ति के स्पन्दन को कान ग्रहण नहीं कर पाते हैं। ध्वनि विज्ञान के नियमों के आधार पर आधुनिक विज्ञान में अनेक अन्वेषण हुए हैं और किये जा रहे हैं। रूस के वैज्ञानिकों ने फसल वृद्धि के लिये ध्वनिशास्त्र के आधार पर खेतों/बगीचों में टेपरिकार्डर लगाकर अशातीत उपलब्धियाँ प्रस्तुत की हैं। ध्वनि विज्ञान का ही संदाय है कि आज ऐसे इलेक्ट्रानिक उपकरण निर्मित हुए हैं जो विभिन्न शब्दों से सचालित होते हैं।
उपर्युक्त तथ्य मान्त्रिक शक्तियों की प्रामाणिकता के साक्षात् निदर्शन हैं। मन्त्रशास्त्र के कथन "अमन्त्र-मक्षरं नास्ति" के अनुसार कोई अक्षर ऐसा नहीं जो मन्त्रहीन हो । हलि. प्रति विद्यानुशासन (द्वितीय अध्याय) ग्रन्थ में बताया गया है कि यह महामन्त्र सम्पूर्ण अक्षरों (स्वरों व वर्णो) का प्रतिनिधित्व करता है। इस महामन्त्र में प्रधान बीज 'ओम्' हैं, जो कि पञ्चपरमेष्ठियों का वाचक है। वैष्णव परम्परा में अ = ब्रह्मा, उ = विष्णु व म् = महेश। इन तीनों वर्गों के संयोग से मानी गयी है। इस प्रकार णमोकार मन्त्र का 'ओम्' बीज वैष्णव परम्परा के प्रधान त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा सृष्टि, स्थिति व संहति का भी प्रतीक है।
हलि. बीज कोश के अनुसार 'ओम्' तेजो बीज, कण्म बीज और भव बीज माना गया है। प्रणववाचक भी माना गया है । मन्त्रशास्त्र के ग्रन्थों मे सभी व्यञ्जनों व स्वरों की संज्ञाएँ तथा ब्राह्मण क्षत्रियादि वर्णों का निरूपण भी किया गया है।
बीजकोश में ऐं भावबीज, लु-काम, क्रीं = शक्ति, हं सः = विषापहार, क्रौं - अंकुश, हां ह्रीं हूं, ह्रौं ह्र:- संर्वशान्ति, मांगल्य, कल्याण, विघ्न विनाशक, क्षां क्षी सू आ मैं क्षो क्षौं- सर्वकल्याण, सर्व शुद्धि बीज के रूप में निरूपण मिलता है। णमोकार मन्त्र में कण्ठ, तालु, मूर्धन्य, अन्तःस्थ आदि सभी ध्वनियों के बीच विद्यमान हैं। जिस प्रकार- "ॐ" बीज सम्पूर्ण णमोकार मन्त्र से, ह्रीं की उत्पत्ति मन्त्र के प्रथमपद से, श्रीं की, उत्पत्ति, द्वितीय पद से, क्ष्वी व क्षीं की उत्पत्ति प्रथम द्वितीय व तृतीय पदों से, हैं की उत्पत्ति, णमोकारमन्त्र के प्रथम पद से, द्रां, द्रीं की उत्पत्ति चतुर्थ व पञ्चम पद से हई है। हा, हीं, हं, हौ हः ये बीजाक्षर प्रथम पद से हुई है। ह्रां ह्रीं, हूँ, जो हः ये बीजाक्षर प्रथम पद से, क्षांक्षी सूझे क्षो क्षौ क्षः बीजाक्षरों की उत्पत्ति द्वितीय व पञ्चम पदों से हुई है। समस्त मन्त्रों के रूप, बीज व पल्लव