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सम्मं में सव्वभूदेसु वेरं मज्झं ण केणवि ।
आसाए वोसरिता णं समाहिं पडिवज्जए । । नियमसार - 104
अनेकान्त / 32
यह गाथा मूलाचार मे दो बार, वीरभद्रके आउरपच्चक्खाण में दो बार तथा आराहणापडायामे मिलती है। महापच्चक्खाण तथा आरपच्चक्खाण (1) मे उक्त गाथा का पूर्वार्द्ध यथावत् मिलता है। उनका मूलपाठ इस प्रकार है
सम्मं में सव्वभूतु वेरं मज्झं ण केणवि ।
आसाए वोसरित्ताणं समाहिं पडिवज्जए । । मूलाचार-2/6
उक्त गाथा मूलाचार- 3 / 3 में भी प्राप्त होती है ।
सम्मं में सव्वभूतु वेरं मज्झ न केणई ।
आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिं पडिवज्जए । । वीरभद्र/आरपच्च-16/22/2834
सम्मं मे सव्वभूएसू वेरं मज्झ न केणई ।
आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिमणुपालए । । वीरभद्र / आरपच्च '16/14/2826 सम्मं मे सव्वभूएसू वेरं मज्झ ण केणइ ।
आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिमणुपालए । आराहणापडाया-1 /564
सम्मं मे सव्वभूएस वेरं मज्झ न केणई ।
खामि सव्वजीवे खमाम ऽ हं सव्वजीवाणं ।। महापच्च-7/140/1580 खामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे ।
मित्ती में सव्वभूएस वेरं मज्झं न केणइ ।। आउरपच्चक्खाण (क ) 6/8/1418 णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसायिणो ।
संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुह हवे | नियमसार - 105
यह गाथा मूलाचार तथा वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण में प्राप्त होती है। उनका मूलपाठ निम्न प्रकार है
णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसाइणो ।
संसारभयभीदरस पच्चकखाणं सुहं हवे ।। मूलाचार - 2 / 68 / (104)
णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसाइणो ।
संसारपरिभीयरस पच्चक्खाणं सुहं हवे ।। वीरभद्र / आउरपच्च- 16/69/2881
आलोयणमालुंछण विरूडीकरणं च भावसुद्धी य ।
चउविहभिम परिकहियं आलोयणलक्खणं समए । | नियमसार - 108 इस गाथा की तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से कीजिए - आलोचणमालुंचन विगडीकरणं च भावसुद्धी दु ।
आलोचिदम्हि आराधणा अणालोचदे भज्जा ।। मूलाचार-7/124 कोहं खमया माणं समद्दवेणज्जवेण मायं च ।
संतोसेण य लोहं जिणदि खु चत्तारि विकसाए । | नियमसार - 115
उक्त गाथा भगवती आराधना, आराहणापडाया, मरणविभत्ति, एवं आराहणापडाया-2
में उपलब्ध होती है। उनका मूलपाठ इस प्रकार है
कोहं खमाए माणं च मद्दवेणाज्जवेण मायं च ।