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अनेकान्त/37
सातवे से उन्नीसवे श्लोक तक कच्छपघाती शासक श्री भीमसेन के पुत्र पाण्डु, राजा अर्जुन, विद्याधर, अभिमन्यु, राजा भोज, विजयपाल और विक्रम सिह आदि शासको के बल, वीर्य, शौर्य, पराक्रम, साहस, विक्रभ आदि मानवीय गुणो की प्रशसा अत्याधिक सौन्दर्यपूर्ण अलकारिक छटा वाली शब्दावली मे विस्तार से वर्णित है। अंतिम शासक विक्रमसिह का चदोभ (डोम कुण्ड = दूब कुण्ड) नामक नगर था।
बीसवे श्लोक मे इस नगर के महान श्रेष्ठी श्री जासूक का उल्लेख है जो जायसवाल वशज थे वे सम्यगदृष्टि थे और चतुर्विध सघ को श्रद्धा पूर्वक चार प्रकार का दान दिया करते थे। इक्कीस श्लोक मे जासूक के पुत्र जयदेव का उल्लेख है जो जिनेन्द्र भगवान के चरणारविन्द मे भ्रमर तुल्य रहा करता था तथा अपने वैभव से तथा यशकीर्ति से सारी दिशाओ को धवलीकृत कर दिया करता था। बाईसवे श्लोक मे जयदेव की पत्नी यशोमती का उल्लेख है जो रूप, गुण, शील स्वभाव से सयुक्त थी। तेइसवे श्लोक मे इनके (जयदेव और यशोमती) दो पुत्र श्री ऋषि और श्री दाहड का उल्लेख है जो सूर्य चन्द्र की भाति दैदीप्यमान थे। चौबीसवे श्लोक मे राजा विक्रमसिह द्वारा इन दोनो (ऋषि और दाहड) को श्रेष्ठी पदवी से विभूषित किये जाने का उल्लेख है। पच्चीसवे श्लोक मे आचार्य देवसेन का उल्लेख है जो लडवागडगण रूपी पर्वत के लिएमणि मणिक्य स्वरूप थे । वे शुद्ध सम्यगदर्शन ज्ञान चरित्र रूपी अलकारो से विभूषित थे, बडे बडे आचार्य उनकी आज्ञा शिरोधार्य करते थे
छब्बीसवे श्लोक मे इनके शिष्य कुलभूषण का उल्लेख है जो रत्नत्रया लकार के धारक थे, विद्वानो मे अग्रणी थे तथा निर्वाण प्रमाण ध्वनि को प्रसारित करने वाले थे। सत्ताईसवे श्लोक मे इनके शिष्य दुर्लभ सेन का उल्लेख है जो रत्नत्रय से सुशोभित थे, सपूर्ण श्रुत के पारगामी थे और आत्म स्वरूप के ज्ञाता थे। अठाइसवे श्लोक मे इनके शिष्य शातिषेण का उल्लेख है जो शास्त्र रूपी सागर के पारगत थे जिन्होने राजा भोज की राजसभा मे शिरोरत्न प. अम्बरसेन के समक्ष अनेको प्रवादियो को अपने वाक-चातुर्य से पराजित किया था। २६ व ३० वे श्लोको मे इनके शिष्य विजय कीर्ति का उल्लेख है जिन्होने गुरु चरणो की कृपा से पुण्य प्राप्त कर रत्नत्रयात्मक शुद्ध बुद्धि प्राप्त की थी तथा इस प्रशस्ति को सूक्ति रत्नो से अल कृत किया था। इन्ही गुरु की कृपा से परमागम का सारभूत धर्मोपदेशात्मक विशिष्ट ज्ञान पाया था। और आयु और शरीर को नश्वर एव विनाशीक समझा। ३१ से ३४ वे श्लोक तक श्री दाहड, श्री कूकेक, श्री सर्पट, श्री देवधर, श्री महीचन्द्र, श्री हरदेव के मामा श्री लक्ष्मण और गोष्ठिक आदि जैन श्रावको का उल्लेख