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________________ अनेकान्त/32 हैं तो कुछ बड़े फार्मो के। कुछ खेतों के स्वामी जैन मंदिर भी हैं। यह क्षेत्र काफी विशाल है। इसमें निवास करने वाले जैन मुख्य रूप से दिगंबर जैन आम्नाय के हैं। इनके अनेक जैन मदिर और चैत्यालय हैं किंतु खेद की बात है कि इस भाग के जैनों ने जीर्ण-शीर्ण जैन मंदिरों को गिराकर उनके स्थान पर नए मंदिरो का निर्माण कर लिया है। इससे प्राचीनता संबंधी बहुत-सा साक्ष्य नष्ट हो गया है। ग्रामों आदि मे बंटी इस क्षेत्र की ही आबादी पर विचार किया जाए तो यह स्पष्ट भासित होगा कि केवल इसी क्षेत्र में ही जैनों की संख्या जनगणना के आंकड़ों से अधिक है। इस भूभाग का दर्पण मंदिर ,डपततवत जमउचसमद्ध तो केरल में इतना प्रसिद्ध है कि उसे पिछले तीस-पैंतीस वर्षों मे हजारो जैन-अजैन लोग कुछ ऊंची पहाडी पर होने पर भी देख चुके है। केरल का यह प्रदेश अपने नए नाम वायनाड के रूप में ही जाना जाता है। एक और क्षेत्र दिगम्बर जैन आम्नाय से मुख्य रूप से संबंधित है। वह है कण्णूर और कासरगोड हिलो के अतर्गत प्रदेश। इस भूभाग में जैनधर्म और जैन जनसंख्या को, जैन मंदिरों को सबसे अधिक हानि हिंदू धर्म के साथ ही साथ टीपू सुलतान ने पहुचाई। उसके अत्याचारो के कारण जैन जनता पर्वतों की ओर भाग गई। दूसरी क्षति पुर्तगालियों ने पहुंचाई। उन्होने गोआ में अनेक जैन मदिरो को नष्ट किया, कर्नाटक में गेरसोप्पा आदि के कलात्मक मंदिरो को तो क्षति पहुचाई ही, केरल मे भी जैन मंदिर नष्ट किए। फिर भी जैनधर्म जीवित रहा। इस प्रदेश में एक अत्यंत प्राचीन चतुर्मुख मौजूद है। इन अत्याचारों का परिणाम यह हुआ कि जैन आबादी विरल हो गई। कम संख्या में होने पर भी इस भूभाग ने गोविंद पे जैसे जैन राष्ट्र-कवि को जन्म दिया। गोमटेश धुदि के इस महाकवि ने केरल और कर्नाटक दोनों का मस्तक ऊंचा किया । केरल के इस भाग में जैनों की जनसंख्या बहुत कम है यह सच है। __ जैनो का श्वेताबर समाज मुख्य रूप से केरल के शहरी क्षेत्र में निवास करता है। यह जैन समाज मूल रूप से गुजराती है। इसके पूर्वज लगभग पांच सौ वर्ष घोडो पर गुजरात से केरल व्यापार के लिए आने प्रारंभ हुए थे किंतु अप्रवासियो की भाति गुजरात से उनका नाता नही टूटा है। वह एक ही मुहल्ले या गुजराती स्ट्रीट में रहते हैं। इनके व्यवसाय के प्रमुख केंद्र केरल के बड़े शहर हैं । एर्णाकुलम, कोच्ची, मट्टानचेरी, कोभिक्कोड, आलप्पी इस प्रकार के नगरो में मुख्य हैं। यहां के जैन नारियल, नारियल का तेल, काफी, कालीमिर्च, अदरक आदि का व्यापार मुख्य रूप से करते हैं। कुछ बडे उद्योग भी चलाते है जैसे नागजी पुरुषोत्तमजी जो कि साहू या डालमिया की भांति प्रसिद्ध हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की ही तरह विख्यात मलयालम दैनिक मातृभूमि के स्वामी
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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