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________________ अनेकान्त/31 के पूर्व में तमिलनाडु के नीलगिरि, कोयम्बतूर, मदुरै रामनाथपुरम् और तिरूजेलवेली जिले हैं। पश्चिम में अरबसागर है जो लगभग ५५० कि मी लंबा है। उत्तर में कर्नाटक का दक्षिण कन्नड जिला तथा उत्तर पूर्व में कुडगु और मैसूर जिले हैं। दक्षिण में तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले का अंतिम स्थान परस्साला है जो कि कन्याकुमारी से ५६ कि मी है। इस पुस्तक में कन्याकुमारी को अन्य अनेक लेखको की भांति केरल का ही एक भाग मानकर विवरण लिखा गया है। यह विवरण जिलों के अनुसार दिया गया है। जो कि चौदह हैं। इनके नाम है- 1.तिरूअनन्तपुरम् या त्रिवेंद्रम् 2. कोल्लम् या Quilon 3. पत्तनंतिट्टा Pathanamthitha 4. इडुक्की |dukki 5. कोट्टायम् Kottayam 6. एर्णाकुलम् Ernakulam 7. त्रिश्शुर Trichur8. आलप्पी Alleppy9 मलप्पुरम् Malappuram 10. कोझिक्कोड Kozhikode 11. पालक्काड Palghat 12. वयनाड Wynad 13. कण्णूर Cannanore तथा 14. कासरगोड Dasargod. कुछ प्रचलित नाम इस प्रकार है एर्णाकुलम और कोचीन या कोच्ची एक ही शहर माने जाते है, कोझिक्कोड कालीकट का नाम है, पालक्काड पालघाट है, त्रिरशूर त्रिचूर ही है। सामान्य तौर पर यह विश्वास किया जाता है कि केरल में जैन समाज नहीं होगा। किंतु यह तथ्य नहीं है। इतना अवश्य है कि जनगणना सबंधी आंकड़ों में जैनो की संख्या बहुत ही कम होती है। सन १६८१ की गणना में, केरल में जैनो की कुल आबादी ३५०० के लगभग आकलित की गई थी। इस सख्या को वास्तविक नहीं माना जा सकता। इस कथन के दो कारण हैं | पहला तो यह कि भारत के अन्य भागो की भांति केरल में भी जैनधर्म के अनुयायियों को भी हिदू लिख लिया गया होगा इस बात की पूरी संभावना है। गणना करने वाले बहुत कम लोग यह जानते है कि जैनधर्म और हिदू धर्म (वास्तव में वैदिक धर्म) दो अलग-अलग धर्म है। दूसरा कारण यह है कि स्वयं जैन लोग भी इस और जागरूक नहीं रहते कि वे वैदिक धर्म के अनुयायी नहीं हैं। यह बात भारत के अन्य भागों पर भी लागू होती है। ___ केरल में जैन धर्मावलंबियो की संख्या का कुछ अनुमान उन भौगोलिक क्षेत्रों पर विचार करके लगाया जा सकता है जिनमे आजकल जैन जन निवास करते है। इस राज्य के मध्य पूर्वी भाग में जैनियो का विस्तार सबसे अधिक है। वे इस प्रदेश में दूर-दूर तक गांवों, छोटे-बड़े शहरों में और अंदरूनी भागों में भी फैले हुए हैं। यह भाग अधिकतर पहाडी है। ये लोग खेती करते हैं। काफी, चाय, कालीमिर्च, इलायची आदि की खेती विशेष रूप से की जाती है नारियल और काजू भी प्रमुख उपज हैं। कुछ समतल भागों में चावल की भी खेती होती है किंतु जैन जन इसमें कम ही संलग्न है। कुछ कृषक छोटे खेतों के मालिक
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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