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________________ अनेकान्त/18 यह सुझाव बडा ही दिलचस्प है। इसके अनुसार तो छठे सातवें गुणस्थान पर वैराग्य को प्राप्त होते हुए भी व्यक्ति मुनि नहीं बन सकेगा क्योंकि उसे शौरसेनी नहीं आती। सोचना यह है कि क्या प्रतिक्रमण संस्कृत या हिन्दी या अन्य किसी भाषा में नहीं किया जा सकता? क्या वैराग्य या प्रतिक्रमण या चारित्र की भाषा से अपरिहार्य संबंध है? अधिक अच्छा सुझाव यह होता कि हमारे साधुगण शास्त्रों को मूल मे पढ समझ सकें इसलिए इस और भी प्रयास होना चाहिए। __ मैं न तो भाषाविद्, न भाषा वैज्ञानिक । फिर भी, इस विवाद में मेरा अपना ख्याल यह है कि जैन आगमों की भाषा को केवल शौरसेनी कहें या जैन शौरसेनी, इससे उनके समय, अर्थ और महत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। संपादकीय टिप्पणी : विद्वान् लेखक ने परिश्रम पूर्वक खोज की है और विभिन्न मतों को समक्ष रखा है जो चिन्तनीय है। अन्तिम पैरा में लिखा है- "आगमो की भाषा को केवल शौरसेनी कहे या जैन शौरसेनी, इससे उनके समय, अर्थ और महत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।' हमारा मन्तव्य है कि भाषा भेद व्याकरण निर्मित होने के समय ई० २-३ शताब्दी में प्रकाश में आए । यदि भाषा को शौरसेनी मात्र मान लिया जायगा, तो कुन्दकुन्द और सभी दिगम्बर आगम पश्चाद्वर्ती सिद्ध होंगे। यहाँ तक कि (जैसा इसी अंक के हमारे लेख में है) णमोकार मंत्र और अन्य कई शब्द शौरसेनी व्याकरण से मान्य नहीं ठहरेंगे। विद्वान् लेखक इसे भी सोचें कि भेद को प्राप्त शौरसेनी भाषा के नियमों मात्र (जो सीमित है) से किसी ग्रन्थ की रचना हो सकेगी क्या? जब कि शौरसेनी घोषक प्राकृत में व्याकरण की दुहाई देते रहे हैं और हमारी दृष्टि में प्राकृत भाषा स्वाभाविक और मिली जुली है। ___संदर्भ-टिप्पणी १. कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली, द्वारा अलग से प्रकाशित पुस्तिका में पं० बलभद्र जी के लेख मूलसंघ की आगम भाषा शौरसेनी के पृष्ठ ३ का अंतिम पैरां। २. उपरोक्त पुस्तिका तथा प्राकृत विद्या, वर्ष ६, अंक ४, जनवरी-मार्च १६६५, पृष्ठ १४ पर छपा लेख शौरसेनी आगम साहित्य की भाषा । ३. शुरु के कुछेक पाश्चात्य चिन्तकों डूगल स्टेवार्ट एवं cW WAll की भी कुछ इसी प्रकार की धारणा थी कि संस्कृत भाषा चालाक ब्राह्मणों द्वारा की गई जालसाजी है, परन्तु उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला। देखें। Macdonell, History of Sanskrit Literature chap i Para 1.
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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