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अनेकान्त/२६ आधुनिक तीर्थकर प्रतिमा का मस्तक भाग है । (सं० क्र० ७७ ए.) सौम्य मुद्रा में तीर्थकर केश विन्यासँ दृष्टिगत है | मुख सिन्दूर से पुता है ।
अम्बिका : तीर्थकर नेमिनाथ की शासन यक्षी अम्बिका की प्रतिमा काले रंग के दानेदार पत्थर पर निर्मित है, जो पत्थर के क्षरण के कारण घिसी हुई प्रतीत होती है (सं० क्र० ७) प्रतिमा का ऊपरी भाग भग्न है, बायें भाग में आम्र डालियाँ दृष्टिगत होती है । आठवींनौवीं शती ईस्वी की प्रतिमा का आकार ३८४२६४९ से.मी. है |
सर्वेतोभद्रिका : इस सर्वेतोभद्रिका प्रतिमा मे चारो ओर पद्मासन में तीर्थकर प्रतिमा अंकित है । (सं० क्र० २५) जिनके वक्ष पर श्रीवत्स चिन्ह तथा सिर पर कुन्तलित केश हैं । दाये बायें चंवरधारी इसी के नीचे ललितासन मे द्विभुजी नारी प्रतिमा है, जो सम्भवतः सबंधित तीर्थकर की शासन देवी हो सकती है । शासन देवी सर्वतोभद्रिका में तीन ओर दृष्टिगत है । ऐसा प्रतीत होता है कि चौथी ओर भी रही होगी लेकिन भग्न हो चुकी है । ३४४१९४१९ से मी. आकार की लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित ग्यारहवीं वारहवीं शती ईस्वी की है।
संग्रहालयाध्यक्ष जिला संग्रहालय शिवपुरी
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तथ्य क्या है ?
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'तीर्थकर पत्रिका फरवरी सन् १९९५ पृष्ठ १८ पर संपादक ने लिखा है-“मूडबिद्री के भट्टारक जी से मौखिक समालाप हुआ । वे चिंतित तो है किन्तु उनकी चिन्ता उतनी ही औपचारिक निर्जीव और निस्तेज है जितनी अन्यो की । वे भट्टारकों को मुनियो से श्रेष्ठ मानते है । उनका कहना है कि आज के मुनिजन भट्टारकों से अधिक नही है।"
उक्त प्रसंग में अभी तक कोई प्रतिवाद पढ़ने में नहीं आया । अव तक तो हम मुनियों को सर्वोच्च पद देने के पक्षपाती रह है । धर्म-रक्षक मार्ग-दर्शन दें।