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अनेकान्त/१६ श्वेताम्बर ग्रन्थों से दिगम्बरत्व की पुष्टि १. प्रसिद्ध श्वेताम्बर ग्रन्थ त्रिपष्टि शलाका पुरूष (आदीश्वर) चरित्र में राजा श्रेयांस द्वारा दिगम्बरत्व की पुष्टि इस प्रकार हुई है ।
'स्नानांगराग नेपथ्य वस्त्राणि स्वीकरोति सः । यो भोगेच्छुः स्वामिनस्तु तद्विरक्तस्य कि हि तैः ।।' पर्व-१, सर्ग ३, श्लोक-३१३
उपरोक्त ग्रंथ में आचार्य हेमचन्द्र जी लिखते है कि भगवान आदीश्वर ने दीक्षा लेने के पश्चात सर्व प्रथम आहार हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस के यहां लिया उन्होने भगवान को नवधा भक्तिपूर्वक आहार दिया । यह बैसाख की तृतीया थी । आज भी श्वेताम्बरों मे इस दिन को भक्ति भाव से मानते है ।
आहार के बाद जब राजा से उनकी प्रजा ने प्रश्न किया कि आदीश्वर महाराज तो नगे थे । उनके शरीर पर न कोई वस्त्र था न आभूषण । नाही वह स्नान करके आये । तब क्या कारण है कि आपने उनको इतना आदर सम्मान दिया ।
राजा श्रेयांस ने प्रजा को समझाया कि स्नान, वस्त्र अथवा आभूषण तो उन्हें चाहिए जो संसार में रमता हो । भगवान आदीश्वर तो संसार से विरक्त हैं उन्हें इनकी क्या आवश्यकता? २. श्वेताम्बरो के प्रसिद्ध ग्रन्थ कल्पसूत्र से भी दिगम्बरत्व की पुष्टि होती है । दीक्षा के दिन से भगवान महावीर एक वर्ष और एक मास पर्यन्त वस्त्रधारी रहे । इसके पश्चात् वे वस्त्र रहित हो गए और हाथों में आहार ग्रहण करने लगे ।
‘समणं भगवं महावीरे सवच्छर साहियं मास जाव
चीवरधारी हुत्था। तेण पर अचेले पाणिपडिग्गहिए' .. ३. एक अन्य श्वेताम्बर ग्रथ ‘पंचाशक मूल' - १७ मे कथन आया है आचेलक्को धम्मोपुरिमस्स या पच्छिमस्स य जिणस्स अर्थात् पूर्व के ऋषभदेव और बाद के महावीर का धर्म अचेलक (निर्वस्त्र) था । ___इसी प्रकार अन्य कई ग्रन्थों मे भी श्वेताम्बराचार्यों ने पुष्टि की है । श्री सम्मेद शिखरजी पर चरण चिन्ह दिगम्बरी मान्यता के अनुसार १. विद्वान न्यायाधीश ने वाद सख्या २८८/१९१२ दि. ३१-१०-१९१६ मे स्पष्ट किया कि बीसों टोंकों के चरण चिन्ह दिगम्बर आम्नाय की मान्यता के अनुसार हैं। चरण इसी स्थान पर क्यों?
न्यायाधीश ने जब श्वेताम्बरों से पूछा कि चरण और टोंकें इन्ही स्थानों पर क्यों बनाए गए है ? श्वेताम्बरों का तर्क था कि पूरा पर्वत उनका था अतः जहाँ भी किसी भी दानी