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________________ अनेकान्त/१५ जैन दिगम्बर समुदाय के जान पड़ते है । यही बात पश्चिमी भारत के जैनियों की बहुलता पर लागू होती है । हिन्दुओं के प्राचीन दर्शन ग्रन्थो में जैनियों को नग्न अथवा दिगम्बर शब्द से संबोधित किया गया है । दिगम्बर प्रतिमाएं ही प्राचीन हैं एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के खण्ड १० पृष्ट ११ सन् १९८१ के अनुसार मथुरा से तीर्थकरो की जो प्रतिमाएं प्राप्त हुई है. वे कुशाण काल की है और उनमे यदि जिन भगवान खड्गासन मुद्रा में है तो निर्वस्त्र (नग्न) दिगम्बर हैं और यदि पद्मासन है तो उनकी निर्मिति इस प्रकार की है कि न तो उनके वस्त्र और न ही गुप्ताग दिखाई देते है । यद्यपि श्वेताम्बर-दिगम्बर भेद कुशाणकाल मे ही प्रारम्भ हो गया था तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय तक दिगम्बर व श्वेताम्बर (दोनों समुदाय) तीर्थंकरों की दिगम्बर (नग्न) प्रतिमाओं की ही पूजा करते थे। गुजरान कं अकोटा स्थान से ऋषभनाथ की अवर भाग पर वस्त्र सहित खड्गासन प्रतिमा प्राप्त हुई है वह ईसा की पाचवी शताब्दी के अंतिम काल की मानी गयी है जब कि बलभी में हुए अंतिम अधिवेशन (काफ्रेस) से ही श्वेताम्बर मत का प्रादुर्भाव हुआ । श्वेताम्बर विद्वानों द्वारा दिगम्बरत्व की पुष्टि १ जैन-आचार के पृष्ट १५३ पर डा० मोहनलाल ने लिखा है 'चाहे कुछ भी हुआ हो, इतना निश्चित है कि महावीर प्रव्रज्या लेने के साथ ही अचेल अर्थात् नग्न हो गये तथा अत समय तक नग्न ही रहे एव किसी भी रूप में अपने शरीर के लिए वस्त्र का उपयोग नही किया । २ आगम और त्रिपिटक . एक अनुशीलन में मुनि नगराज पृष्ठ १५२ पर लिखते है कि शीत से त्रस्त होकर के (महावीर) बाहुओ को समेटते न थे, अपितु यथावत हाथ फैलाये विहार करते थे । शिशिर ऋतु मे पवन जोर से फुफकार मारता, कड़कड़ाती सर्दी होती, तब इतर साधु उससे बचने के लिए किसी गर्म स्थान की खोज करते, वस्त्र और तमाम लकड़ियां जलाकर शीत दूर करने का प्रयत्न करने, परन्तु महावीर खुले स्थान में नग्न बदन रहते और अपने बचाव की इच्छा भी नहीं करते.......निर्वस्त्र देह होने के कारण सर्दीगर्मी के ही नहीं वे दशमशक तथा अन्य कोमल-कठोर स्पर्श के अनेक कष्ट झेलते थे । ३ तेरह पंथ के आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी पुस्तक तेरापथ पृष्ट-११७ पर दिगम्बरत्व की पुष्टि इस प्रकार की है कि भगवान महावीर की प्रतिमा को कपड़े पहनाना, आभूषण से सजाना, तेल-फुलेल लगाना वीतरागता की निशानी नहीं है क्योंकि महावीर तो सबकुछ त्याग कर अर्थात् प्रव्रज्या लेकर नग्न हो गए थे ।
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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