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अनेकान्त/१२ उसी प्रकार कालचक्र में इन दोनो पहियों में भी छः छः आरे-माने जा सकते है । प्रत्येक आरे का नाम, उसके गुणों को दृष्टि में रखकर इस प्रकार निश्चित किया गया है :
१. सुखमा-सुखमा अत्यन्त सुख रूप, २ सुखमा : सुख रूप, ३ सुखमादुखमा : सुख-दुख रूप, ४. दुखमा-सुखमा · दुख-सुख रूप, ५ दुखमा . दुख रूप, ६ दुखमा-दुखमा · अत्यंत दुख रूप ।
उत्सर्पिणी काल के आरों का क्रम ठीक उल्टा है, अर्थात् वह दुखमा दुखमा से आरंभ होता है और सुखमा-सुखमा पर समाप्त होता है । भगवान ऋषभदेव _इन आरों की पारस्परिक काल सीमा इतनी बड़ी होती है कि उसे सख्याओ मे प्रकट नहीं किया जा सकता । प्रत्येक चक्र मे २४ तीर्थकर प्रकट होते है | आजकल अवसर्पिणी चक्र का युग है | हम लोग उसके पांचवे आरे में चल रहे है । इसी चक्र के तीसरे आरे मे प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का आविर्भाव हुआ था । तीसरे आरे के समाप्त होने में जब तीन वर्ष, आठ माह, पन्द्रह दिन शेष रह गये, वह निर्वाण को प्राप्त हो गये ।।
तीर्थकर ऋषभदेव के पश्चात जव चौथे आरे का युग आया तब उसमे शेष २३ तीर्थकरो का आविर्भाव हुआ । भगवान महावीर अंतिम तीर्थकर थे । तीर्थकर ऋषभदेव ही इस काल चक्र में जैन धर्म के आदि प्रणेता और नीति निर्माता माने जाते है । __भगवान ऋषभदेव के संबंध मे उल्लेख मिलता है कि उन्होंने एक सहस्र वर्ष तक कठिन तप करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था । भगवान ऋषभदेव ही वह प्रथम महामानव थे जिन्होने उच्चकोटि की सामाजिक व्यवस्थाए स्थापित की । अंतिम तीर्थकर
चौबीस तीर्थकरों में अंतिम तीन तीर्थकरों के विषय में अधिक जानकारी मिलती है । उनके नाम है तीर्थकर नेमिनाथ,पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी । भगवान नेमिनाथ का जन्म शौरीपुर मे हुआ था । उनके पिता का नाम समुद्र विजय और माता का नाम शिवा था । समुद्र विजय यदुवश के प्रतापी नृपति थे । भगवान नेमिनाथ विवाह के अवसर पर ही विरक्त हो गये थे । उन्होंने गिरनार पर्वत पर कठोर तप करके केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पद प्राप्त किया ।
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म ईसा पूर्व ८७७ काशी में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराज अश्वसेन और माता का वामादेवी था । महाराज अश्वसेन नागवशी नृपति थे । भगवान पार्श्वनाथ ने सत्तर वर्ष तक धर्म का प्रचार किया और सौ वर्ष की अवस्था में उन्हें सम्मेद शिखरजी मे मोक्ष प्राप्त हुआ । ___भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व ५९९ कुण्डग्राम - वैशाली मे हुआ था । उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला देवी था । महावीर तीस वर्ष की अवस्था