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अनेकान्त/७
प्राकृत रूप सही है, जिन्हें पश्चाद्वर्ती संस्कृत वैयाकरणों ने विविध रूपों में विभक्त कर प्राकृत मात्र की सार्वभौमिकता को स्वीकार किया है । ___हॉ, गोविन्द "शब्द शौरसेनी का है और शौरसेनी के किस विशेष सूत्र से निर्मित है तथा आदि शंकराचार्य ने इसे कहां शौरसेनी का घोषित किया है ? इन गुत्थियों को लेखक ने अपने लेख में नही सुलझाया है । स्पष्टीकरण होना चाहिए था । खेद, कि संपादक स्व-मान्य व्याकरण से सिद्ध रूपों को भी व्याकरणातीत बता रहे है । हम तो सभी को प्राकृत का स्वीकारते रहे है । पाहुड शब्द की निष्पत्ति
यद्यपि उक्तसंपादक ने इसी अंक के पृष्ठ १३ पर यह स्पष्ट स्वीकार किया है कि "जितने प्राकृत व्याकरण है, उनमे सस्कृत शब्दो से प्राकृत शब्द बनाने के नियम दिए है, " -तथापि वे ( प्राकृत में व्याकरण सिद्धि के मोह मे अपना वचन भंग कर )" पाहुड शब्द की सिद्धि सस्कृत की बजाय “पदेहि फुड इस प्राकृत शब्द से बताने को उद्यत हुए। उन्हे नही मालूम कि उनके द्वारा प्रस्तुत व्याकरण संबंधी प्राकृत गाथाएँ भी ठेट उस शौरसेनी की नही, जिसे वे दिगंबर आगमो की भाषा घोषित कर रहे है । देखें - उन गाथाओ के कुछ शब्द रूप । क्या वे शौरसेनी के है ? जैसे-जइ, भणइ, कीरइ, आइ, एए, कायव्यो, आई, तइअत्तणयं, दरिसेयव्वो, काऊण -आदि । जव मूल ही नही, तब शाखा कहा? फिर यह भी स्पष्ट नहीं कि क्या वे गाथाएं कुन्दकुन्द के पूर्व की हैं ? जिनके आधार पर कुन्दकुन्द चले हों और इसमे क्या प्रमाण है ? आगमों पर संकट
पं० वलभद्र द्वारा की गई घोषणा कि - "अरहंताणं और पुग्गल शब्द रूप खोटे सिक्के की भांति चलन में आ रहे है," से तो वे सभी दिगम्बर शास्त्र संकट में आ गए है, जिनमे उक्तशब्दरूप विद्यमान है- और जिनके प्रमाणो को ऊपर भी दर्शाया गया है । पाठक सोचे कि, दिगम्बरों के कौन से शास्त्र पूरे खरे सिक्के है जिनमे उक्त शब्द रूपो मे से एक भी रूप नही है । उक्त तथ्यों के सिवाय सपादक जी और भी खोटे सिक्को का चुनाव करने की कृपा करे - क्योंकि कुन्दकुन्द भारती जैसा सुरक्षित स्थान और अवसर उन्हें फिर शायद ही मिले, वहाँ गुरू का वरदहस्त भी विद्यमान है । वे वहाँ बैठकर यह भी निश्चय करे कि दिगम्बर-आगमो मे ये खोटे सिक्के कब और कैसे प्रवेश कर गए ? कही ऐसा तो नहीं कि कभी किसी अन्य को आप जैसा सुअवसर प्राप्त हो गया हो और उसने अवसर देख (आपकी दृष्टि मे) इन खोटे सिक्को का प्रश्रय दे दिया हो ? हमारी दृष्टि से आगम कं शब्दो में ता मभी सच्चे सिक्कं है । शौरसेनी मात्र कैसे, क्यों?
अग और पूर्वी को दोनो सम्प्रदाय स्वीकार करते है और उनकी भाषा अर्धमागधी दानो को मान्य है । वाद मे दिगम्बर्ग में इनका लोप घोषित करकं दृष्टिवाद का कुछ अंश