________________
अनेकान्त / 22
सरकार ने यहूदियो के दातो का ढेर, उनके बच्चो के जूतो के ढेर तथा वे आठ-दस ऐसी भट्टिया थी जिनमे यहूदियों को जिदा जला दिया जाता था। इन ढेरों के चित्र दिखाए गए थे। हिंदी भाषा में एक मुहावरा दात तोड देने से संबंधित है। क्रोध मे कह दिया जाता है कि "मै तेरे दात तोड दूगा"। ऐसा लगता है कि यह प्राचीन काल से चली आ रही एक प्रतिशोध प्रणाली का अवशेष है। मानव वंश शास्त्र के ज्ञाता इस बात को जानते है कि कुछ आदिम जातिया शत्रुओं की अधिक से अधिक खोपडिया प्रदर्शित कर अपनी शक्ति का परिचय देती हैं। अत इस प्रकार के कथनों को केवल इतिहास मानना चाहिए, न तो उस पर गर्व करना चाहिए और न ही निंदा करनी चाहिए। केवल यही सोचना चाहिए कि शायद ऐसा भी हुआ होगा ।
केरल में मूषकवश की उत्पत्ति के संबध मे एक कथा प्रचलित हैं जो कि मूषकवंश नामक संस्कृत काव्य में निबद्ध है। उसके अनुसार पृथ्वी को क्षत्रियरहित करने के बाद परशुराम ने एक यज्ञ किया किंतु उसके लिए उन्हें एक क्षत्रियपुत्र की आवश्यकता हुई। उन्हे पता चला कि केरल की एक एजिमला नामक एक पहाडी मे एक क्षत्रिय रानी ने एक ऋषि के आश्रम मे एक क्षत्रिय पुत्र को जन्म दिया है और वह बडा हो रहा है। परशुराम उसे लाए और घट से उसका अभिषेक कर उसे राजा बनाया तथा उसका नाम रामघट रखा। इस पहाड़ी के नाम का अर्थ चूहे की पहाडी किया जाता है और इस वश के नाम का कभी-कभी शाब्दिक अर्थ भी किया जाता है। प्रस्तुत लेखक ने जिननिकेतन - श्रीमूलवासम् नामक प्रकरण मे पर्याप्त विश्लेशण के बाद यह सिद्ध किया है कि यह वंश जैनधर्म का अनुयायी था औरयह कि श्रीमूलवासम् का संबंध बौद्धधर्म से नही अपितु जैनधर्म से है ।
गुणभद्राचार्य ने परशुराम सबंधी जो कथा दी है वह कुछ अशो से भिन्न है और विस्तृत भी। यहां ऐसे स्थलो का निर्देश किया जाता है।
उपर्युक्त आचार्य के अनुसार सुभौम चक्रवर्ती अट्ठारहवे तीर्थकर अरनाथ के तीर्थ में उत्पन्न हुए थे । इसका अर्थ यह हुआ कि वे अरनाथ और उन्नीसवे तीर्थकर मल्लिनाथ के समय के बीच या अंतराल में किसी समय हुए । मल्लिनाथ का जन्म मिथिला मे हुआ था ।
अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी राजा सहस्रबाहु और उसकी चित्रमती रानी से कृतवीर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ चित्रमती कान्यकुब्ज नरेश पारत की पुत्री थी। इस राजा की बहिन श्रीमती का विवाह सहस्रबाहु के काका या चाचा शतबिदु से हुआ था । उनके पुत्र का नाम जमदग्नि था । जमदग्नि की माता का देहात हो गया इस कारण वह तापस हो गया और पचाग्नि तप तपने लगा । जमदग्नि का तप दोषपूर्ण था यह बताने के लिए गुणभद्राचार्य ने एक कथा दी है जिसके अनुसार दृढग्राही नामक राजा और हरिशर्मा नाम के एक ब्राह्मण मे गहरी मित्रता थी। राजा ने जैन मुनि दीक्षा ले ली थी जिसके कारण वह स्वर्ग में देव हुआ और वह ब्राह्मण तापस के व्रत लेने के कारण ज्योतिष्क देव नामक निम्न पर्याय में उत्पन्न हुआ । स्वर्गस्थ देव