SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन परंपरा में परशुराम ले राजमलजैन जैन मान्यता है कि हर कालखंड में त्रेसठ शलाकपुरुष या श्रेष्ठ होते हैं जो कि अद्भुत शक्ति के धारक, प्रसिद्धि को प्राप्त करनेवाले तथा उसी भव अर्थात जन्म मे अथवा अगले एक या दो भवा मे मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस संख्या में चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र जो कि नारायण के अग्रज होते है तथा नौ नारायण या वासुदेव और नौ प्रतिनारायण जिनका नारायण द्वारा वध होता है, सम्मिलित है। प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे और इक्कीसवे तीर्थकर नमिनाथ हुए है जिनका जन्म मिथिला में हुआ था। ये राजा विजय के सुपुत्र थे। इनके तीर्थकाल मे अर्थात् इनके और बाईसवे तीर्थकर नेमिनाथ जिन्होंने केरल सहित दक्षिण भारत मे धर्म का उपदेश दिया था, के बीच के समय में आठवा चक्रवर्ती सुभौम हुआ। जैन पुराणो मे परशुराम को इसी चक्रवर्ती का समकालीन बताया गया है। परशुराम संबधी सबसे प्राचीन जैन उल्लेख सभवत आचार्य शिवार्य की रचना भगवती आराधना में पाया जाता है यह कृति ईसा की प्रथम शताब्दी या उससे भी पहले की आंकी जाती है। वह मुनि धर्म से सबधित है। उसमें लोभ के कारण हिंसा के सबंध मे निम्नलिखित गाथा आई है रामस्य रामदग्गिस्स वच्छं घित्त्ण कत्तविरिओ वि। णिधणं पत्तों सकुलों ससाहणों लोभदोसेण 11138811 अर्थात् जमदग्नि के पुत्र परशुराम की गायो को ले लेने के कारण राजा कार्तवीर्य लोभदोष के फलस्वरूप समस्त परिवार ओर सेना सहित मृत्यु को प्राप्त हुआ | परशुराम ने उसका वध कर डाला। __इसी प्रकार का सदर्भ हरिषेण के वृहत्कथाकोश में भी उपलब्ध है। हरिषेण ने अपनी रचना को आराधनोद्धृत कहा हैं यह कृति संभवत: दसवीं सदी की है। परशुराम संबंधी कथा कुछ विस्तार से जिनसेन प्रथम के जैन हरिवंशपुराण जो कि 783 ईस्वी मे पूर्ण हुआ था ओर गुणभद्राचार्य जिनका समय आठवी सदी है, के उत्तरपुराण में वर्णित है। इस पुराण में ऋषभदेव के बाद के तेईस तीर्थंकरों सहित शेष शलाकापुरूषो का जीवन चरित्र लिखित है। ___ यहां यह कथा पहले जिनसेन प्रथम के अनुसार देने के बाद उसकी तुलना की जाएगी।
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy