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________________ ALLL DATE MM / / P SENTER Ine IITEMIR परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्पन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।। वर्ष ४७ किरण २ वोर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण सवत २५२०, वि. स. २०५१ अप्रल-जन १९९४ सम्बोधन कहा परदेसी को पतियारो। मन माने तब चलं पंथ कों, सांझि गिनै न सकारो। सबै कुटुम्ब छोड़ि इही, पुनि त्यागि चले तन प्यारो ॥१॥ दूर दिसावर चलत आपही, कोउ न राखन हारो। कोऊ प्रोति करौ किन कोटिक, अन्त होयगो न्यारो ॥२॥ घन सौं रुचि धरम सों भलत, झलत मोह मझारो। इहि विधि काल अनंत गमायो. पायोति भव पारो॥ सांचे सुख सौं विमुख होत है, भ्रम मदिरा मतवारो। चेतहु चेत सुनहु रे 'भैया', आप ही आप संमारो॥४॥ कहा परदेसी को पतियारो॥ गरब नहिं को रे ए नर निपट गंवार ।। झंठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीज रे । के छिन साँझ सुहागरु जोबन, के दिन जग में जीजे रे ॥ बेगहि चेत बिलम्ब तजो नर, बंध बढ़े थिति कोज रे। 'भूधर' पल-पल हो है मारो, ज्यों-ज्यों कमरी भोजे र ॥
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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