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________________ श्री पाश्र्वनाथाय नमः सम्मेद शिखर जी (पारसनाथ पर्वत) के सम्बन्ध में बेबाक खुलासा अहमदशाह से सनद प्राप्त करने की आवश्यकता क्यों भ्रम निवारण : पड़ी? वास्तविकता यह है कि उक्त सनद जाली थी जिसे सासदों, विधायकों एवं गणमान्य नागरिको को प्रिवी काउपिल' जैसे न्यायालय ने भी मान्य करार सम्बोधित दिनांक ५ मई, ६४ के अपने पत्र में श्वेताम्बर दिया है । (वाद क्र. २८८/४ वर्ष १९१२ ए. आई. आर. मूर्तिपूजक समुदाय के श्री राजकुमार जैन ने बिहार के १९३३ प्रिबो काउसिल-१९३)। शिदोर जिले में स्थित श्री सम्मेद शिखर जी (पारसनाय टोंक और चरण अति प्राचीन : पर्वत) से सम्बन्धित तथ्यों को गलत तरीके से तोड-मरोड़ श्री सम्मेद शिखर पर बीस टोंके तीर्थंकरो की व कर प्रस्तुत करते हुए अत्यन्त उलझन पूर्ण स्थिति पैदा कर एक टोक गौतम गणधर को अत्यन्त प्राचीर है (टोंक दी है और इस प्रकार देश तथा समाज को गुमराह करने अर्थात छोटा मंदिर)। टोको में चरण चिह्न दिगम्बर का प्रयत्न किया है। इसलिए पाठकों को वस्तुस्थिति से आम्नाय के अनुसार प्रतिष्ठित है । इन टोंको को इसी मगत कराना आवश्यक हो गया है, ताकि किसी भी रूप मे मनी जैनियों द्वारा पूजा जाता रहा है, इसलिए प्रकार के भ्रम की गुंजाइश न रहे। पूजा का अधिकार सगन रूप से सभी जनो का है (ए. तीर्थ सभी जैनों का : आई. आर. १६२६ विपी काउ सिल-१३)। ___ श्री राजकुमार जैन ने अपने पत्र के प्रारम्भ मे चढ़ावे पर एकाधिकार को व्यापारिक दृष्टि : स्वीकार किया है कि बिहार राज्य के गिरीडीह जि । मे स्थिति यह है कि १७६० मे ईस्ट इण्डिया कपनी स्थित श्री सम्मेद शिखर जिसे 'पारसनाथ पर्वत' के नाम ने भूतथा मे यह पर्वत पालगं। की जमीदारी में से भी जाना जाता है और जहां वौबीस मे से बी तीर्थों मामिल iammar ने निर्वाण प्राप्त किया है, जैनियों का पवित्रतम् तीर्य है। को पर्वत के मदिर का चढ़ावा भी मिनता था (ए. आई. उनके इस कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह तीर्थ आर. १६२६ प्रिवी काउमिल-१३) । सन् १८७२ में जैनो के सभी समुदायो का समान रूप से वन्दनीय तीर्थ है मूर्तिपूजक श्वेताम्बर सनाज के ट्रस्ट ने राजा से ५०० चाहे वह दिगम्बर हो या स्थानकवासी अथवा तेरहपंथी रुपया वाषिक देकर पर्वत के चढ़ावे का अधिकार प्राप्त या मूर्तिपूजक श्वेताम्बर । ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कर लिया। यह कदम उनके ट्रस्ट के व्यवसायिक दृष्टिकि इसका प्रबन्ध केवल मूर्तिपूजक श्वेताम्बरों के हाथ मे कोण को उजागर करता है। १५०० रुपये के एवज लाखों ही क्यो हो? का चढ़ावा प्राप्त करना व्यवसायिक नही तो और जाली सनद : क्या है। श्री राजकुमार जैन का पदि यह कथन सत्य है कि इस सोढियों के निर्माण में बाधा: तीर्थ पर सदियो से प्रवेताम्बर मूर्तिपूजक समाज का स्वा- दिगम्बर जैन समाज ने सन् १८९८ में यात्रियों की मित्व, अधिकार व प्रबन्ध रहा है, तब उन्हें सम्राट अकबर व सुविधा के लिए पहाड़ के रास्ते मे ७०५ सीढ़ियों का
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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