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________________ छपते-छपते पं० बलभद्र जी को सम्पादन शैलो : प्राचार्यश्री के उद्गार अप्रैल-जून १४ का 'प्राकृत-विद्या' अङ्क अभी मिला । पू. आ. श्री विद्यानन्द जी महाराज का चिन्तन पढ़ा। उन्होंने पं० बलभद्र जो को संपादन-विधि के विषय में स्पष्ट किया कि 'उन्होंने (संपादक जो ने) अनेक ताड़पतोय, हस्तलिखित और मद्रित प्रतियों का तुलनात्मक अध्ययन करके अपने संपादन के कुछ सूत्र निर्धारित किए और उन सूत्रों के अनुसार प्रचलित परम्परा को लीक से कुछ हटकर छानोपयोगी संपादन किया।' स्मरण रहे कि वीर सेवा मन्दिर प्रचलित परम्परा को लोक से न हटने की बात कर पाठान्तर देने की बात करता रहा है और मूल आगमों में गृहीत सभी शब्दरूपों को प्रामाणिक मानता रहा है । (देखें अनेकान्त विशषांक माच ६४)। जब कि बलभद्र जी ने अपने संपादन में परंपरित लोक से हटकर बहुत से शब्दरूपों को प्रागम-भाषा से बाह्य घोषित कर उन्हें बदलकर एकरूपता दे दो और ताडपत्रीय प्रति को आदर्श प्रति होने की बात करते रहे। वीर सेवा मन्दिर कोण के समर्थन की दिशा में उक्त तथ्य उजागर करने के लिए आचार्य श्री को प्रामाणिकता श्रद्धास्पद एवं हृदयांकित रहेगी। प्राकृत (आर्ष) में व्याकरण के प्रयुक्त होने की सिद्धि में मनि पो द्वारा 'वागरण' शब्द एवं प्रस्तुत अन्य प्रमाण चिन्तनीय हैं। इनके विषय में (यदि आवश्यक हुआ तो) Ke किसो अन्य अङ्क में निवेदन किया जायगा । मुनिश्री को सावर नमोऽस्तु ।
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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