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________________ अनेकान्त/१५ 'कुंदकुंद शब्द कोश (विवेक विहार) सुय केवली पृ ३४४ । भणिय पृ. २३५ । इक्क पृ. ५६ । धित्तव्व पृ ११२ । हविज्ज पृ. ३५० । गिण्हइ पृ १०७। कह पृ ८७। मुयइ पृ. २५२ । जाण पृ. १२६ । करिज्ज पृ. ८५। भणिज्ज पृ २३० । पुग्गल पृ. २२५ । जाणिऊण पृ. १२६ । णाऊण पृ १४६ } चुक्किज्ज पृ १२३ आदि। स्मरण रहे कि कुदकुद भारती के सम्पादनो मे उक्त जातीय शब्दो का बहिष्कार कर दिया गया है। और हम उक्त शब्द रूपो और आगमगत सभी शब्द रूपो को सही मान रहे है तब हम पर कोप क्यो? मीठा मीठा गप कडुआ कडुआ थू : सपादक कुदकुद भारती ने डॉ सरजू प्रसाद के 'प्राकृत विमर्ष ग्रन्थ से 'मुन्नुडि पृ. ६ पर एक उदाहरण दिया है जिसमे जैन शौरसेनी की पुष्टि है । पर सपादक की मन चीती न होने से अब वे उसे ठीक नही मान रहे । 'प्राकृत विमर्ष मे निम्न सदेश भी है। उन पर भी विचार होना चाहिए। १ “शौरसेनी ग्रन्थ की स्वतत्र रचनाएँ तो उपलब्ध नही होती परन्तु जैन शौरसेनी मे दिगम्बर सप्रदाय के ग्रन्थ उपलब्ध होते है। कुदकुद रचित 'पवयणसार' जैन-शौरसेनी की प्रारम्भिक प्रसिद्ध रचना है। कुदकुदाचार्य की प्राय सभी रचनाएँ इसी भाषा में है। प्राकृत विमर्श पृ ४३ "महाराष्ट्री स्टैण्डर्ड प्राकृत मानी जाती है ------प्राकृत वैयाकरणो ने महाराष्ट्री को ही मूलमान कर विस्तार से वर्णन किया है और अन्य प्राकृतो को उसी प्राकृत के सदृष्य बताकर कुछ भिन्न बिशेषताएँ अलग अलग दे दी है। वही पृ. ३७ ३ 'शौरसेनी प्राकृत के स्वतत्र ग्रन्थ अभी (सन् १६५३) तक उपलब्ध नही हो सके है वही पृ. ४१ ४ 'महाराष्ट्री प्राकृत को ही वैयाकरणो ने प्रधान भाषा मानकर उसके आधार पर अन्य प्राकृतो का वर्णन किया है। वही पृ. ७५। ५ 'उस काल मे महाराष्ट्री स्टैण्डर्ड प्राकृत थी। वही पृ. ७५ हम यह भी स्मरण करा दे कि अब शौरसेनी की ओर करवट लेने वाले और 'शौरसेनी व्याकरण' तथा कुदकुद शब्दकोश' में विविध भाषाओ के शब्द रूपो का पोषण करने वाले डॉ. प्रेम सुमन जैन हमे दिनांक ३.४.८८ के पत्र में भी तत्कालीन भाषाओ के प्रयोग होने की स्वीकृति पहिले ही दे चुके हैं। तथाहि “कोई भी प्राचीन प्राकृत ग्रन्थ आगम, किसी व्याकरण के नियमो से बधी भाषा मात्र को अनुगमन नही करता । उसमे तत्कालीन विभिन्न भाषाओं, बोलियो के प्रयोग सुरक्षित मिलते हैं।"-"एक ही ग्रन्थ मे कई प्रयोग प्राकृत बहलता को दर्शाते है। अत
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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