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अनेकान्त/१४
फिर भी यदि इनकी बदली दृष्टि से दिगम्बर आगमों की भाषा शौरसेनी ही है तो, क्यों तो इन्होने नियमसार की प्रस्तावना में कुन्दकुन्द के विषय में ये लिखा कि-'उन्होंने (कुन्दकुन्द ने) अपनी भाषा मे मगध और महाराष्ट्र की बोली को सम्मिलित कर भाषा को नया आयाम दिया। और क्यों अब अपने उक्त पत्रक में ही अन्य भाषाओं के मेल को दर्शाया इन्होंने उक्त पत्रक मे लिखा हैं
"डॉ. उपाध्ये ने प्रवचनसार की भाषा का विश्लेषण करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इसमें अर्धमागधी की कई विशेषताएँ सम्मिलित है (इन पंक्तियो को डॉ. प्रेम सुमन ने सन् १९८८ में प्रकाशित शौरसेनी प्राकृत व्याकरण की भूमिका में भी दिया हैं।) डॉ. हीरालाल जैन तो स्पष्ट ही कर चुके हैं कि
"The prakrit of the sutras, The Gathas as well as of the commentary. is Saurseni influencedby the order Ardhamagahi on the one hand and the Maharastri on the other and this is exactly the nature of the language called Jain saurseni (Introduction of षटखडागमp.IN
उक्त स्थिति मे सपादक क्यो जैन शौरसेनी की घोषणा कर अपने वचन से मुकर गए ओर क्यों डॉ सुमन जी भी जैन जैसे सबल विशेषण को हटाने लगे? जो विशेषण कि दिगम्बर जैनागमो की परम्परित मूल भाषा की प्रामाणिकता की सिद्धि मे कवच है। भाषा से जैन-विशेषण हटाने के एकॉगी आग्रह ने ही तो इन्हे यह कहने के लिए मजबूर कर दिया है कि आगम भाषा अत्यन्त भ्रष्ट है आदि प्राकृत महाराथियों के दो ग्रन्थ:
जैन आगमो की मान्य अर्धमागधी और बाद मे दिगम्बरो मे मान्य 'जैन शौरसेनी' से जैन शब्द उडाकर उस भाषा को मात्र शौरसेनी का रूप देने वाले दो महारथी विद्वान प्राकृत के ग्रन्थो का संपादन भी करते रहे है और सपादनों मे सहायक भी रहे है। उन्होने ही 'शौरसेनी व्याकरण' तथा 'कुन्दकुन्द शब्दकोश' का निर्माण किया है। दोनो ग्रन्थो मे दिए गए कुछ शब्द ही देखे जॉय और निश्चय किया जाय कि वे शब्द शौरसेनी व्याकरण के किन सूत्रों से निर्मित है और क्या वे शौरसेनी के हैं? यदि दिगम्बर आगमो की भाषा शौरसेनी है और वे शब्द शौरसेनी के है तो कुन्दकुन्द भारती प्रकाशन से वे वहिष्कत क्यो किए गए? और यदि शौरसेनी के नहीं तो क्यों कुन्दकुन्द की रचना में उपलब्ध हए? निर्णय करना आप का कार्य है कि उक्त व्याकरण रचयिता गलत हैं या परमपूज्य आगम भाषा गलत हैं? 'शौरसेनी प्राकृत व्याकरण' (उदयपुर)
इक्को पृ. ५५। चुक्किज्ज पृ. ६१। मुणेयव्व पृ. ३४। करिज्ज पृ. ६१। कुणई पृ. १। होइ पृ ३३, ६० । सक्कइ पृ ६४। लोए पृ. ८८. ६० | पुग्गल पृ. २५, ८८.६१। हवइ पृ. ७७। जाण प्र. ६३। भणिऊण पृ. ६४। सुणिऊण पृ. ४। रूधिऊण पृ ६४ आदि।