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________________ २४, बर्ष ४६, कि०३ अनेकान्त के मात-पिता ने अपने पुत्र का नाम वर्धमान रखा अनुवाद कर दिया गया है कि अशोक ने बुद्ध की पूजा की। था। इस प्रकार श्रीलका मे महावीर का यश पहले शायद यह अशोक का सबसे छोटा? लेख है। इसका ही फैल चुका था। नो पक्तियो का लेख तो गिरनार का है जिसमें उसने (६) उपर्यवत ग्रन्थ (१५-६२) के ही अनुमार श्रीलका के केवल इसी बात पर जोर दिया है कि लोग अपने सप्रदाय एक स्थान का नाम वर्धमान था जो कि महामेघवन की प्रशसा और दूसरे संप्रदार की निंदा नहीं करें। ऐसा (अनुराधपुर के निकट) के दक्षिण की ओर स्थित था। करके वे अपने ही संप्रदाय का हनन करते हैं। क्या यह एक यह तथ्य भी विचारणीय है कि मिहली भाषा मे नेमीनाथ को निर्वाणस्थली की प्रेरणा थी? आश्चर्य की प्राकृत भाषा के तत्व पाए जाते हैं। श्री सिल्वा के अनु- एक बात यह भी है कि बुद्ध की जन्मस्थली वो यह यात्रा सार प्राकृत का एक भेद सिंहली प्राकृत भी है । प्राकृत का अशोक ने कलिंग युद्ध (जब उमका बोद्ध हो जाना बताया सबध जनो मे है यह सभी जानते हैं। बौद्धों को प्रिय जाता है) के बारह वर्ष बाद की थी। अपने उपास्य की भाषा पाली है। प्राकृत नाग लोगो की भाषा रही होगी पवित्र भूमि के दर्शन मे इतनी देगे। जो कि व्यापारी थे। अशोक शिलालेखो का अध्ययन करने के पश्चात् डा. प्रो० सिल्वा नामक श्रीलका के इतिहासकार ने लिखा हरेकृष्ण मेहताब ने लिखा है-"अशोक के सारे अनु. है कि वहाँ मोरिय नामक जाति प्राचीन ममय मे बसनी शासनो का अध्ययन करने पर विस्मित होना पडता है। थी और उसका चिह्न मयूर अथवा मोर था। चन्द्रगुप्त वह विस्मयकारक विषय यह है कि उन्होने बौद्धधर्म-प्रचार मौयं भी इसी जाति का था और उसकी वजा पर भी के प्रसार की कथा का कही भी उल्लेख नही किया है।" मोर का ही चिह्न था। अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार अशोक के चार-पाच लेखो मे २५६ अक आया है था यह भी भ्रामक कथन है। प्रो० सिल्वा (Silva, K. जैसे गुजंग (जिला दतिया), रूपनाथ (जिला जबलपुर), M. De, A History of Shri Lanka, O.UP. P. पानगुडरिया (जिला सीहोर) आदि । कुछ में उसके पहले 10-110 ने यह मत व्यक्त किया है कि --- ''Though सावन शब्द का प्रयोग हुआ है किन्तु उसका भी अर्थ Buddhist sources have naturally endeavoured श्रावण को भूलकर उसके पड़ाव का २५६वां दिन कर to associate Ashok with the Third Council, दिया गया है। वास्तव में वह महावीर निर्वाण सवत् he does not refer to it anywhere in his ins- २५६ है। कोई भी यह गणना करके स्वय इमकी परीक्षा criptions not even in those relating specifically कर सकता है। महावीर का निर्याण ईसा मे ५२७ वर्ष to the Sangha." सबंधित परिषद ईसा से २५० वर्ष पूर्व हुआ था। पहला सवत् ५.६ मे पूर्ण हुआ। इसमें से पूर्व पाटलिपुत्र में हुई थी। कुल चार पक्तियो मे बुद्ध के २५६ घटाए तो २७० सख्या आई । अशोक का समय ईसा जन्म स्थान पर उत्कीर्ण लबिनी के छोटे से शिलालेख मे पूर्व २७४ से २३२ के लगभग है। इस प्रकार यह स्पष्ट भी अशोक का नाम नही है। उसमे केवल इतना ही लिखा होगा कि ईमा पूर्व २७० वह मन है जब अशोक राज्य है कि यहां शाक्यमुनि का जन्म हुआ था, इसलिए इस कर रहा था। ग्राम से छटे भाग के स्थान प' आठवां भाग करके रूप में अशोक के दिल्ली या सप्तम लेख मे यह लिखा है कि लिया जाए। बुद्ध को अपना उपास्य मानने वाले सम्राट वृक्ष लगाए गए हैं जो मनुष्यों तथा पशुओ को छाया के लिए यह बहुत बडो छुट नही है, वह शत प्रतिशत हो प्रदान करेगे। जीवधारी अवश्य हैं। उसके धर्म नियम ये सकती थी। इसके अतिरिक्त इस लेख की क्रिया “मही- किसी जीव की हिंसा न की जाए । किसी जीव को आघात यित" का अर्थ भी सम्भवत: गलत लगाया गया है। न पहुंचाया जाए। क्या ये भावनाएँ बौद्ध धर्म के अनुसार उसका प्राथमिक प्रथं To delight, gladden or to be हैं जिसके प्रवर्तक ने स्वयं मास भक्षण किया था और अपने glad है जब कि उसका गौण अर्थ worship लेकर यह अनुयायियों को तीन प्रकार के मांस भक्षण की अनुमति
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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