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श्रीलंका में जैनधर्म और अशोक
श्री राज मल जैन, जनकपुरी, दिल्ली दक्षिण भारत मे जैनधर्म के अस्ति-व के लिए श्रीलका कुछ तथ्य इस काव्य के Greiger के अंग्रेजी अनुवाद के के बौद्ध महाकाव्य महावशो के आधार पर प्राय: मभी आरार पर संक्षेप मे यहाँ दिए जाते हैं। इतिहासकार इस बात से सहमत है कि ईमा से पूर्व की (१) बुद्ध मे पहले श्रीलका का एक नाम गाग द्वीप चौथी शताब्दी मे जैनधर्म दक्षिण मे फैल चुका होगा भी था। क्योकि श्रीलका उपर्य त ग्रंश में यह उल्लेख है कि वहाँ (२) शाक्यमुनि को यह ज्ञान हुआ कि उनना धर्म श्रीलंका के राजा पांडकामय (ईमा पूर्व ३३७-३७८) ने निरपयो मे फैलेगा। इमाि उन्होंने श्रीलका को तीन बार (जैनो) के लिए एक भवन तथा क मन्दिर का निर्माण यात्रा की थी। जब वे यहाँ गा तब कल्याणी (कोलबों करवाया था। यह गक भौगोनिक पथ्य है कि किमी ममय पाम को एक नदो) प्रदेश में एक नाग गजा राज्य केरल और श्रीलका जुडे हा थे। स्पष्ट है कि जैन वहाँ करता था। उस समय बुद्ध ने हवा में उडते हुए पर केरल होते हुए पहुंचे होगे । पांडगमय और चन्द्रगुप्त यक्स (Yakkha) लोगो के मन मे वर्पा, तूफान मौर्य (राज्यारोहण ३२० ईसा पूर्व) ममकालीन थे। जैन बादि के द्वारा भय उत्पन्न किया और उन्हें गिरिसम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने २५ वर्ष राज्य कर सिंहासन दीप मे भगा दिया .. नाग और असर लोगो के त्याग दिया था। यदि पाइका य से पहले धोलका पहुचन परमोपकार के लिए बुद्ध ने श्रीलका की तीन यापाये मे जनधर्म को एक सौ वर्षों का भी समय लगा हो तो भी की थी। यह मानने मे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि श्रीलका (३) महावमो के अनुसार बग (बगाल) देश के राजा की मे जैनधर्म ईमा मे ५०० वर्ष व अर्थात् महावीर स्वामी
पुषी का पुत्र सिंहबाहु था। उसके पुत्र विजय को के निर्वाण के कुछ सान गद हो श्रीलका मे पहुच चुका दुराचारी होने के कारण राज्य में निकाल दिया था। उपलब्ध जानकारी के अनुमार पाडुकमय का गया। वह ७०० साथियों व स्त्रिगे, उच्चो महित राज्याभिषेक बुद्ध निर्वाण के १८६ वर्ष बाद हुआ पा श्रीलका पहुंचा। यह घटना इतिहासकार ईगा में और अशोक के पुत्र महेन्द्र द्वार। बौद्धधर्म क. श्रीलंका मे ५०० वर्ष पूर्व हुई मानते हैं। बच्ने जहा उतरे वह प्रचार बुद्ध निर्वाण के २३६ वर्ष बाद प्रारम्भ हया था। नागदी था। थी ग्रीगर ने नाग का अर्थ Naked इसका अर्थ यह धुआ कि श्रीलका मे जैनधर्म का अस्तित्व किया है। महेन्द्र से १० वर्ष पूर्व भी था।
(४) इमी कार में यह उल्लिमित है कि नो नद गजाओ इतिहासकार यह मानते है कि अशोक ने श्रीलका मे के बाद मगध का साम्राज्य चन्द्रमान मौर्य को प्राप्त बौद्धधर्म का प्रचार करने के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और हुआ। उसे पूरे जबूढीप का स्वाहा गया है। पुत्री संघमित्रा को श्रीलका भेजा था और वहां के राजा (५) महावंसो के प्रथम अध्याय मे यह उल्लेख भी है कि देवानांपिय निरस (ईसा पूर्व २५०-२१०) ने उनका बुद्ध को यह ज्ञात था कि महोटर (मामा) और चलोस्वागत किया था तथा बौद्ध धर्म फैलाया था। यह घटना दर (मानजा) मे युद्ध होगा। महोदर की बहिन का ई० पू० तीसरी शताब्दी की है।
विवाह एक नाग राजा से बहुमान पर्वत पर हुआ अब महावशी के आधार पर इस प्रमग से संबधित था। बहुमान वर्धमान का प्रा!त रूप है। महावीर