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________________ ६. वर्ष ४६, कि० १ अनेकान्त क्षेत्र की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है बाद मे यह उनका काल २०० ई० पू० से ३५० ई. तक का निर्धारित नष्ट भ्रष्ट हो गई। नष्ट होने का कारण अज्ञात है। किया गया है। इन सिक्को से यह प्रकट है कि कम से पंचाल जनपद एवं अहिच्छत्रा से प्राप्त सिक्के तथा कम २७ राजाओ ने इस क्षेत्र पर स्वतत्र रूप से राज्य उनसे प्राप्त जानकारी :-- किया। इन सबकी राजधानी अहिच्छत्रा थी। ये सब अहिच्छत्रा से अच्युत नाम के राजा के सिक्के प्राप्त शासक एक ही राजवंश के नहीं अपितु अनेक राजवंशों के हुए हैं। अहिच्छत्रा से तृतीय शताब्दी ई. के भी कुछ प्रतीत होते हैं, जो कि एक दूसरे के बाद बिना किसी सिक्के प्राप्त हुए हैं। शोलदित्य प्रतापशीला राजा के व्यवधान के समृद्ध होते रहे। इन राजवंशों की कालसिक्के भी भिटौरा (फैजाबाद), अयोध्या के पास अहि- गणना तथा प्रत्येक राजवंश के राजाओं की संख्या निश्चित च्छत्रा प्राप्त हुए है"। अहिच्छत्रा से एक तांबे का सिक्का नही है । ये स्थानीय शासक या राजवंश पंचाल या पंचाल प्राप्त हुआ है, जिसे कनिघम ने "क्वाइन्स आफ मेडिकल राजा के नाम से विश्रुत हुए। उन्होने अपने नाम के सिक्के इंडिया" में प्रकाशित कराया था। इसका वजन ५ ग्रेन चलाये और कभी-कभी राजकीय उपाधियां धारण की। तथा आकार ६ इच है। इस पर पादपीठ पर पूर्ण कुम्भ वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मगध के शुंगों (१८५-७२ दृष्टिगोचर होता है। सिक्के के दूसरी ओर (श्री) महार ई०पू०) सम्बन्धित थे या नहीं, इस विषय मे भिन्न(ज) (ह)रिगुप्तस्य पढ़ा गया है। फलन, जिसने इसे मत हैं। कुछ विद्वानो के अनुसार वे निश्चित रूप से शंगों केटलाग आफ द क्वाइन्स आफ डाइनेस्टीज के अन्तर्गत ही के अधीन थे या शुंगो की ही शाखा के थे तथा प्रकाशित किया था, के अनुसार इसकी लिखावट अस्पस्ट शंगों के राज्यपाल के रूप मे कुछ दशक तक कार्य करते है, केवल 'गुप्तस्य' पाठ स्पष्ट है एलन ने सिक्के को रहे । अन्य लोगों के अनुसार इस अनुमान का कोई आधार जारी करने वाले राजा के नाम को बतलाने मे अपनी नही है। उनके अनुसार शुगों एवं अहिच्छत्रा के पचाल असमर्थता व्यक्त की है, किन्तु दूसरी ओर कहा है कि राजाओं का कोई सम्बन्ध नही था। वे अपने शासन कार्य लेख को पुरालिपि के अनुसार इसकी लिपि पाचवी में स्वतंत्र थे। शताब्दी ई. की जा सकती है। तांबे के सिक्के की अभी ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल के पचाल राजाओं खोज हुई है, जिस पर स्पष्ट रूप से हरिगुप्त लिखा है ने मौर्यों के अधीन रहकर शासन प्रारम्भ किया तथा बाद तथा इसकी आकृति चन्द्रगुप्त द्वितीय के तांबे के सिक्के ग मे मौर्यों की शक्ति क्षीण होने पर वे शक्तिशाली बन गये मिलती-जुलती है। एक अन्य शिलालेख की प्राप्ति हुई है, सम्भवतः इन्होने मौयों की शक्ति क्षीण होने मे स्वय योग जिससे ज्ञात होता है कि राजा हरिराज, जो कि गुप्त दिया। किन्तु यह अपने प्रतिद्वन्दियो से भी कमजोर होते राजवंश का था, ने उस क्षेत्र का शासन किया था, जहाँ रहे। अत: जिनकी नई राजकीय शक्ति का उदय हुआ था, वर्तमान बादा जिला है। उसका काल पाचवी शताब्दी का ऐसे शंगों के अधीन हो गये। यह अधीनता बहुत ही कम है। इस बात की प्रबल सम्भावना है कि अहिच्छत्रा के रही क्योंकि ग्रीक राजा दिमित्रयस तथा उनके सेनापति उक्त सिक्के का प्रचलन उसी के द्वारा हुआ था। इलाहा- मिनाण्डर की शक्ति के सामने शुंग राजाओं की शक्ति बाद म्युनिसिपल म्युजियम में भी एक तांबे का सिक्का है, क्षीण हो गई। जिस पर "महराजा हरिगुप्तस्य" अंकित है। इस सिक्के यगपुराण से ज्ञात होता है कि दुर्वीर यूनानियों ने का आकार .८५ इच तथा ४६ ग्रेन है। इसमें सन्देह की साकेत. पचाल तथा मथुरा पर आक्रमण कर लूटपूट की कोई अवकाश नहीं रह जाता है कि उसी महाराजा ने और वे पाटलीपुत्र तक पहुंच गये। शासन पूर्णतया छिन्न अहिच्छत्राका सिक्का भी प्रचलित किया था। इस राजा भिन्न हो गया, किन्तु सौभाग्य से आक्रमणकारी अपनी ने महाराजा की उपाधि धारण की थी। सैनिक सफलता का फल प्राप्त करने में असमर्थ रहे, अहिच्छत्रा से जो सिक्के प्राप्त हुए है, सामान्यतया क्योंकि वे शीघ्र ही अपने देश को वापिस चले गये।
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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