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प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नगरी-अहिच्छत्रा सम्भवतः इसी यूनानी आक्रमण का वर्णन पतजलि ने किया स्पतिमित्र । इन राजाओं के सिक्कों का आकार गोल है है। पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के मुख्य पुरोहित थे, जिन्होंने और इनकी शैली और प्रकार ज्यादातर एक जैसी ही है। अपनी कृति मे उत्तर पंचाल तथा उसकी राजधानी अहि- इन सब पर तीन पचाल प्रतीक बने हुए हैं तथा इसके मध्य ग्छत्रा की सूचना दी है। वे उत्तर पचाल तथा पूर्व पंचाल राजा का नाम ब्राह्मी लिपि मे लिखा हुआ है । दूसरी बोर मे भेद करते हैं तथा पंचाल माणवकः शब्द का पयोग एक देव या एक देवी सिंहासन पर बैठी हुई है तथा एक ऐसे छात्रों के लिए करते हैं जो कि पचाल से आये थे। वृक्ष भी अकित है। अग्निमित्र तथा सूर्यमित्र के सिक्के के मुद्रा सम्बन्धी प्रमाण भी इस समय अहिच्छत्रा की प्रधा- दूसरी ओर क्रमशः अग्नि तथा सूर्य के प्रतीक अंकित है। नता को प्रमाणित करते है। यह काल लगभग १८७ इन देवताओ से उनकी स्वय की पहचान होती है। सिक्कों तथा १६२ ई० पू० का था।
की इस अपूर्व शृखला से उस मूर्ति विज्ञान के अध्ययन में इस क्षेत्र के पचाल राजाओ का अनुमानित क्रम सहायता मिलती है। जिसकी कल्पना उनमे की गई है। उनके सिक्को के आधार पर निश्चित करने का प्रयत्न सिक्को के आधार पर इन राजाओं के क्रम तथा समय का किया जाय तो यह प्रकट होता है कि उनमे रुद्रगुप्त, जय- पता लगाना संभव नही हुआ है तथा सामान्यतया यह गुप्त तथा दामगुप्त सबसे पहले के थे। इस परम्परा के विश्वास किया जाता है कि ये लगभग १०० ई. पू. से उत्तराधिकारी सम्भवतः विश्वपाल, यज्ञपाल तथा बगपाल २०० ई तक समुन्नत रहे होंगे। ऐसा नहीं कहा जा सकता हए । पभोसा शिलालेख के अनुसार बगपाल शोनकायन कि उनम से एक या अधिक आषाढ़सेन या उसकी परम्परा का पुत्र और उत्तराधिकारी था। शोनकायन यज्ञपाल और से निश्चित सबंधित नही रहे मोंकि शृंगों की सची में विश्वपाल का उत्तराधिकारी हो सकता है। बगपाल का अग्निमित्र का नाम तथा कण्वों की सूची में भूमिमित्र का पुत्र तथा उत्तराधिकारी भागवत था, जिसका उत्तराधि- नाम है । यह अनुमान किया जाता है कि पचाल के ये मित्र कारी उसका पुत्र आषाडसेन हया। यह पभोसा (जिला राजा मगध राजवश से सबधित रहे होगे, किन्तु इस प्रकार इलाहाबाद) गुफा का दान करने वाला था। आषाढ़सेन की अनुरूपता की मुद्रा विशेषज्ञ तथा दूसरे विद्वान नही की बहन गोपाली का पुत्र बस्ति मित्र था, जो सम्भवतः मानते है । अहिच्छत्रा के स्थानीय शासकों का शासन उस समय कौशाम्बी का शासक था जिसका काल लगभग । अधिकतया उत्तरी पचाल की सीमा तक सुनिश्चित रहा। १२३ ई०पू० निश्चित किया गया है। पचाल के सिंहासन इस प्रकार के कम सिक्के ही अन्यत्र प्राप्त हुए हैं। अकेले पर आषाढ़सेन का उत्तराधिकारी सभवतः वसुसेन था। भूमिमित्र के सिक्के होशियारपुर से प्राप्त हुए हैं। अग्नि
१.०ई० पू० के लगभग इस राजवश के उत्तराधि- मित्र तथा इन्द्रमित्र के सिक्के पटल में प्राप्त हुए हैं। कारी दूसरे १४ राजा हुए। ये सभी अपने नाम के आगे बहस्पतिमित्र राजा का उल्लेख गया के शिलालेख मे डा। मित्र शब्द लगाते थे तथा प्रायः पचाल के मित्र राजा के इन अपवादो से यह निर्देश किया जा सकता है कि इन तीन नाम से जाने जाते थे। वे है- अग्निमित्र, आयुमित्र, भानु- राजाओ ने लम्बे समय तक कार्य किया तथा अधिक मित्र, भूमिमित्र, ध्र वमित्र, इन्द्रमित्र, जयमित्र, फाल्गनमित्र, विस्तृत सीमा मे राज्य किया। (क्रमशः) प्रजापतिमित्र, सूर्यमित्र, वरुणमित्र, विष्णुमित्र तथा बह
सन्दर्भ १. विमलचरण लाहा-प्राचीन भारत का ऐतिहासिक इडिया पृ. ३१ । भूगोल पृ. १०७ १०६ ।
७. बी. एन शर्मा : हर्ष एंड हिज टाइम्स पृ. ४१५ । गजेटियर आफ इडिया (उ. प्र.) बरेली पृ. २१.२२। ८. द एशिएट ज्याग्रफी आफ इडिया पृ. ३०३-३०५। भगवद्दत्त-भारतवर्ष का वहद् इतिहास पृ. १८१। ६. डा. एल. डो. बासेट : हिस्ट्री आफ कन्नौज पृ. १६-१७
डा. कृष्णदत्त बाजपेयी: काम्पिल्यकल्प पृ.४। १०. वह, पृ. १६ । १२. हिस्ट्री आफ कन्नोज पृ. ३५॥ ५. वही पृ. ५।
१३. डी. सी. सरकार : स्टडीज इन इडियन क्वाइन्स ६. लालमणि जोशी : स्टडीज इन बुद्धिस्ट कल्चर आफ पृ. २२१-२२६ ।