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________________ २२, वर्ष ४६, कि०२ । भनेकान्त रजत, माणिक्य एवं स्फटिक स्वरूप में दिखाई जाती है। जिसका अतिशय आसपास के क्षेत्रों मे यहां तक कि इसे पिछले पैतीस वर्षों मे हजारो लोगो ने देखा है। ईमाइयो में भी मान्य बताया जाता है। इसकी गणना केरल के पर्यटक स्थल के रूप में की जाती नागरकोवित का नागराज मन्दिर सोलहवी शताब्दी है किन्तु खेद है कि कुछ शरारती लोगो के कारण इसका तक जैन मन्दिर था यह बात पुरातत्वविदों ने त्रावणकोर प्रदर्शन बन्द कर दिया गया है । इसे (Mirror temple) महाराजा भूतल वीर मार्तण्ड के शिलालेखो के आधार कहा जाता है। पर स्वीकार कर ली है। डा० के. के. पिल्ले ने यह मत पालक्काड मे एक चन्द्रप्रभ मन्दिर है जो पूरा का व्यक्त किया है कि यह मन्दिर ईसा की छठी शताब्दी मे पूरा ग्रेनाइट पाषाण से निमित है। वह एक हजार वर्ष निर्मित हुआ होगा क्योकि वह समय केरल मे जैनधर्म के से भी अधिक प्राचीन बताया जाता है। कम अलकरण लिए अत्यन्त गौरवशाली था। इस मत को ह्वेनसाग के और यहा से नौवीं-दसवी की प्रतिमा की प्राप्ति से इसकी इस विवरण से भी समर्थन मिलता है कि सातवी सदी मे पुष्टि होती है। इसका भी अनेक बार जीर्णोद्धार हुआ है। जब उसने भारत की यात्रा की थी तब उसने कोटा में मन्दिर प्रदक्षिणा पथ है और पादपीठ पर चन्द्रप्रभु का । अधिक संख्या में दिगम्बर साधुग्रो को विचरण करते पाया लांछन उत्कीर्ण है। इसके सामने एक चबूतरा है जिसे था। कोट्टा इस समय नागरकोविल में समा गया है। किसी मन्दिर का अधिष्ठान पुरातत्वविदो ने माना है। नागराज मन्दिर के कुछ स्तम्भो पर पाश्र्वनाथ, महावीर इसी मन्दिर से कुछ दूरी पर मुतुपट्टणम् (मातियो का और पद्मावती देवी की मूर्तिया आज भी देखी जा सकती बाजार) था । वहा जैनियो की अच्छो आबादी थी। जब है। इसके प्रवेश द्वार पर लगभग चार फीट ऊची आधी जामोरिन ने यहा के शासक पर आक्रमण किया तब उसन मानव आकृति में धरणेन्द्र और पद्मावती हैं। प्रवेशद्वार हैदरअली को अपनी सहायता के लिए बुलाया । जैन लोग के फश पर साष्टांग प्रणाम करती एक महिला मति भी धर्भ परिवर्तन के भय से यह सपान छोडकर अन व चल जडा हुई है। इस मन्दिर के गर्भगृह पर छत नही है। गए। उसके बाद जब टीपू सुलतान ने इस नगर पर प्रतिवर्ष घास-फूस की नई छत डाली जाती है । कही ऐसा तो नही हुआ कि मन्दिर को क्षति पहुंचाने का प्रयन्न हुआ आक्रमण किया तब उसने मन्दिर को तुडवा कर उसकी ग्रेनाइट सामग्री का उपयोग यहां किला बनवाने में किया। हा आर शासन देवी या देवता का कोई चमत्कार हुआ हो। यह भी उल्लेखनीय है कि इस मन्दिर में पार्वनाथ आज भी किले मे गजलक्ष्मी, देव कुलिकाओ के शिखर की पीतल की मति आज भी विष्णु के रूप में पूजी जाती जैसी रचनाए, कमल, मीनयुगल आदि देखे जा सकते है। है । लेखक ने उसे स्वय देखा है क्षौर करलचरित्रम् मे भी मन्दिर का ध्वस्त प्रधिष्ठान अभी भी है। इस तथ्य का उल्लेख किया गया है। पुरातत्वविद यह आलप्पी मे एक भब्व देरासर का निर्माण पच्चीस मानते हैं कि करल के मन्दिरो पर जैन स्थापत्य का भी लाख की लागत से किया जा रहा है जो कि जनवरी ३ प्रभाव है। इस सम्बन्ध में केरल के स्मारको के विद्वान मे पूर्ण होना था। श्री सरकार ने एट्र मन्नर के शिव मन्दिर के विषय में हानरी मे धर्मनाथ जिनालय मे धर्मनाथ, पार्श्व- लिखा है-"It is a sarvatobhadra temple with बारावासपज्य और महावीर की मूर्तियां हैं। प्रवेश द्वार four openings. In other words, the plan पर लक्ष्मी का अभिषेक करते गज प्रदर्शित हैं । इस मंदिर simulates the chaturmukha shrines of the का भी जीणोद्धार हुआ है । इसके साथ हो चन्द्रप्रभु जिना- Jain tradition. That is why the linga in the लय है। इसमे काच पर सम्मेदशिखर और शत्रुजय के centre can be viewed from all the directions." चित्र केरल के ही कलाकारो से बनवाए गए है । एक लोगन्स ने तो यहा तक लिखा है कि मस्जिदो की निर्माण छोटे से मन्दिर मे शातिनाथ की अतिशयपूर्ण प्रतिमा है शैली पर भी जैन प्रभाव है। (शेष पृ० २६ पर)
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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