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________________ २०, बर्ष ४६, कि० २ अनेकान्त उपस्थित होती होगी। देवी के एक हाथ में पुस्तक सी लगती installed in the kudalmanikkam temple isa है किन्तु वीरगा नही है। छोटे आकार के चरणभी स्थापित Jain Digambar in all probability Bharates wara, the same saint whose statute exists at हैं, सफेद चवर भी लटके दृष्टिगत होते हैं। पुजारी आज भी अडिगल कहलाते है। एक विशेष तथ्य यह है कि इस Sravanbelgala in Mysore' भरत बाहुबलि के बड़े भाई थे यह इस कथन में शायद छुट गया है। मन्दिर में एक भूमिगत (underground secret cham त्रिचूल मे वडकुन्नाथ नामक एक मन्दिर है। वह ber) है किन्तु उसमे क्या है यह कोई नही जानता। श्री कुन्नाथ का अर्थ है उत्तर के देवता का मन्दिर । वह एक इदुचडन ने इसी विषय पर अपनी बृहत् पुस्तक मे यह मत । सर्वतोभद्र विमान है जिसमे चार द्वार होते हैं किन्तु अब व्यवत किया है उसमे कण्णगी के अवशेष हो सकते है। इसमें केवल तीन द्वार ही रह गए हैं। यह गोलाकार है यदि ऐसा होता तो इतनी रहस्यात्मकता की शायद आव और एक कम ऊंची पहाडी पर स्थित है जिसे वषभादि श्यकता नही होती। प्रस्तुत लेखक का अनुमान है कि उसमे करते है। इसमे जैनो को अत्यन्त प्रिय कमल और पत्रावलि प्राचीन जैन प्रतिमाएं हो सकती है शायद इसी कारण उसे का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके परिक्रमा पथ मे अनेक कभी खोला नहीं जाता था उनके साथ सर्प आदि के द्वारा मूतिया हैं। मुख्य मन्दिर से जुडा ऋषभ मडप भी है रक्षा आदि की कोई घटना डी हुई है जिसके कारण यह जिसमे जनेऊ धारण करके और ताली बजाकर प्रवेश कोष्ठ भयप्रद बना हुआ है । ___ कोडंगल्लूर मे ही केरल की सबसे प्राचीन मस्जिद करना होता है इसके परिसर मे कुछ अन्य छोटे मदिर भी बताई जाती है । लोगन्स के अनुसार वह किसी समय एक हैं। इसके चार गोपुर है । पिछले गोपुर मे जैनो को प्रिय जैन मन्दिर था । अब केवल इतना ही कहा जा सकता है परस्पर बैरी जीव का चित्रण भी है। इमके नो शिलालेखों में से चार नष्ट हो गए है। इस कारण इसके इतिहास का कि वह एक द्वितल विमान था। इरिजालकडा मे कडलमाणिक्यम् नामक एक विशाल मन्दिर है । वह चेर शासको ठीक-ठीक पता नही लगता। इसके नाम और अकन आदि के समय में निर्मित अनुमानित किया जाता है। यह एक से ऐसा लगता है कि यह मूल रूप से जैन मन्दिर था। श्री वालतु के अनुसार इस मन्दिर ने तीन युग देखे हैंद्वितल विमान या मन्दिर है। इसका अधिष्ठान पाषाण १. आदि द्रविड काल, २. जैन सस्कृति युग और ३. शैव का है किन्तु उसके ऊपर की दीवाले लकडी की है । इसमे वैष्णव युग जो अभी चल रहा है। स्पष्ट लगता है कि एक काट्टम्बलम् या नृत्य संगीत के लिए एक मंडप भी है यह ऋषभ देव का मन्दिर था। जिसकी आकृति एक अधखुली छतरः जैसी है। इसका यह षम दव गोपुर काफी ऊचा है। मन्दिर के साथ ही एक अभिषेक कोझिकोड मे एक तृक्कोविल है। यह श्वेतांबर मदिर सरावर या टेप्पकलम है। इसका जल केवल अभिषेक के है। कहा जाता है कि लगभग पांच सौ वर्ष पर्व गजराती लिए ही उपयोग में लाया जा सकता है। पहा प्राचीनता जैनो को जामोरिन ने इसलिए दिया था कि वे पर्यषण के के प्रमाणस्वरूप स्थाणुरवि नामक शासक का एक शिला- दिनो मे वापस गुजरात न जावे और यही अपना पर्व मना लेख नौवी सदी का है। इसमें भारत के एक मूर्ति है जिसके लिया करें। मदिर प्राचीन है किन्तु उसका भी जीर्णोद्धार दर्शन की अनुमति महिलाओं को नहीं थी। केरल के हुआ है। उसका अभिष्ठान ग्रेनाइट पाषाण का है और प्रसिद्ध इतिहासकार श्रीधर मेनन का कथन है-"Accor- छत ढलवां है। कलिकुड पार्श्वनाथ के नाम से भी जाने ding to some scholars the Kudalmanikkam जानेवाले इस मदिर के मूलनायक पार्श्व के अतिरिक्त अन्य temple ay Irinjakuda, dedicated to Bharata, तीर्थकर प्रतिमाएं भी हैं जिनम अजितनाथ की ध्यानावस्था the brother of Sri Rama, was once a Jain प्रतिमा का अलकरण विशेष रूप से आकर्षित करता है। shrine and it was converted in to a Hindu temple, during the period of the decline of उनके मस्तक के पास हाथी, देवियो और यक्ष यक्षणी की Jainism itis argued that the deity originally लघु आकृतियां है। गर्भगृह के मुरुम द्वार पर कांच का
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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