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१८, वर्ष ४६, कि०२
अनेकान्त
गुहा मन्दिर मालूम पड़ता है। उसमे पार्श्वनाथ, महावीर मे गुफाओ की संख्या १६० है किन्तु पुरातत्व विभाग द्वारा और पद्मावती देवी की मूर्तिया आज भी प्रतिष्ठित है। किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में इनकी संख्या और भी केवल पद्मावती देवी की मूर्ति पर पीतल मढ दिया गया अधिक होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। ये गुफाए है। कुछ इतिहासकार इसका समय आठवी सदी बताते हैं घने जगलो और ऊची पर्वत चोटियों पर है। सर्वेक्षक श्री जो कि सही नहीं मालूम पडता है । उस समय तो जैनधर्म वाय. डी. शर्मा ने अपनी रिपोर्ट मे पहले तो इनका वर्गीको क्षति पहुचना प्रारभ हो चुका था। इस गुफा को करण वैदिक और बौद्ध गुफाओ के रूप में किया किन्तु सामने से ही दूर से दिखाई पड़ने वाली चट्टान पर आले- बाद में उन्हें बौद्धो से भी अमबधित इमलिए कर दिया नमा रचना में एक पद्मासन तीर्थकर प्रतिमा अधूरी उकेरी कि उनमे बोद्ध पूजा वस्तुओ का अभाव है। फिर वे यह गई मानी जाती है। इसकी कुछ तुलना तमिलनाडु मे मत व्यक्त करते है कि अन्य माधु उनका उपयोग करते कलगुमल मे इसी प्रकार चट्टान मे बनाए गए आले मे होगे । अन्य मे जैन माधुओ की सम्भवत गिनती की जा उकेरी गई पदमासन प्रतिमा से की जा सकती है। स्थानीय सकती है। आधार यह है कि वैदिक ष आश्रम बना अजैन जनता यह विश्वास करती है कि रात्रि मे देवगण कर गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे। बौद्ध भिक्षु सघाराम आकर इस प्रतिमा को सुडौल रूप देते है। पाायद प्रति- या विहारो मे रहते थे। जैन साधुओ के लिए वनो मे मा के कारण कुछ इतिहासज्ञ इसे शैलाश्रय गलनी से और पर्वतो पर तपस्या करने का विधान था। उन्हे कवल मार लिया गया है इस प्रकार की धारणा व्यक्त करत है। आहार के लिए नगर में आना विहित था। भद्रबाहु और किन्तु यदि इसका सम्यक अध्ययन किया जाए तो यह
सिकन्दर जिन जैन साधुओ से मिलने स्वय गया था उससे स्पष्ट होगा कि यही पर एक कोष्ठ के बराबर स्थान
स्पष्ट है कि गुफाओ मे तपस्या की जैन परपरा बहुत चट्टानों के ही कारण बन गया है जिसका उपयोग तपस्या
प्राचीन है । अत: केरल की अनेक गुफाओ का जैनधर्म से रत मुनियो द्वारा किया जाता रहा होगा। जत. इसे
सबधित होना मानने में कोई आपान नहीं होनी चाहिए। शैलाश्रय मानना उचित नहीं है।
इडप्पाल, पेरिंगलकन्तु आदि गुफाए इस प्रकार के उदाहरण अब तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में सम्मिलित हैं । मलयालम लेखक श्री वालत्तु ने इन्हे ध्यान मन्दिर की तिरुच्चारणटमले पर भी एक गुहा मन्दिर है। वह भी सज्ञा दी है और अनेक जैन गुफाओ की ओर संकेत किया आजकल भगवती मन्दिर कहलाता है । उसमे पार्श्वनाथ, है। महावीर और पद्मावती देवी की मूर्तिया आज भी देखी केरल मे ही एक गुफा का नाम भ्रातनपाडा है जा सकती है। यह भी चट्टानों से निर्मित है यद्यपि इसके जिसका अर्थ है भ्रांत (पागल) लोगो को गफा। यह गफा ऊपर जो शिखर है वह पतलो इंटो से बना है। इसके साथ अधरी और शैव धर्म से सबधित बताई जाती है। आश्चर्य की एक चट्टान पर लगभग तीस सौष्ठवपूर्ण तीर्थकर प्रति- ही है यदि शैव लोगो को पागल कहा गया हो। श्रीवालत मा उत्कीर्ण है। मतियो और गुहा मन्दिर के दूसरी और का कथन है कि यह जैन गुफा है । इस प्रकार के नाम का की चट्टान पर आठवी और नौवी सदी के अनेक लेख हैं एक प्रयोग आंध्र प्रदेश में भी पाया गया है। वही गांव जिनसे ज्ञात होता है कि तमिलनाडु के दूरस्थ प्रदेशो तक के एक भाग का नाम दानवलपाड (जिसमे जैनों का के भक्त यहा आते, दान करते थे तथा मूलिया आदि बन- निवास था) और दूसरे भाग का नाम देवल पाद्ध (जिसमे वाते थे। यह स्थान किसी समय पावापुरी के समा- पवित्र ब्राह्मण निवास करते थे) था। इसलिए इस नाम पर माना जाता था। इतनी पवित्रता प्राप्त करने के लिए कोई आश्चर्य नही। शायद इसी बात को ध्यान में रखते अनेक शताब्दियो का समय अवश्य लगा होगा। तेरहवी हुए केरल गजेटियर के सपादक ने लिखा है, "The सदी मे इसका जैव स्वरूप नष्ट हो गया।
mcgalithic habitation sites should be studied जमेल द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार केरल more intensively to know more about the