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________________ पृष्ठ (गतांक से प्रागे) गोम्मटसार कर्मकाण्ड का शुद्धिपत्र (गतांक से मागे) [अ० रतनचंद मुख्तार द्वारा सम्पादित तथा शिवसागर ग्रंथमाला से प्रकाशित] संशोधिका-१०५ आपिकारत्न विशालमति माता जी [आ० क. विवेकसागर शिष्या] तया -जवाहरलाल मोतीलाल जैन, भीण्डर पंक्ति अशुद्ध ५८२ तीर्थकर सभरात केवली के देव-नारकी तीर्थकर समुद्घात केवली के औदारिक शरीर मिश्रकाल मे. देवनारकी ५८७ दुःस्वर उदय नही है, दु स्वर का उदय नही है। ५८६ और यशस्कोति युगल की अपेक्षा यशस्कीति और विहा मोगति युगल की [६x६x२x२x२] ५७६ भग है अपेक्षा [६४ ६x२x२x२x२] ५७६ भग हैं। ५८६ विहायोगति रूप सुभग विहायोगति, सुभग ५८६ यशम्कीति चार युगल यशस्कीति, ये चार युगल ५८८ सर्व [१+१+ + +१०+६+१+१७] सर्व [१+१++++१०+६+१+ ६० भंग १७] ६० भंग हैं। ५६० सुभग, सुस्वर, आदेय सुभग, आदेय ५६१ ६२०+१२+११७६+१७६० ६२०+१२+११७५+१७६० ५६३ १७-१८ आदेय और विहायोगति रूप पांच युगलो आदेय और यशस्कीतिरूप पांच युगलों की अपेक्षा पाच युगलो की अपेक्षा......" की अपेक्षा......... होती और शेष होती है और शेष ६४६ मिश्र व ३ २४, २३, २२, प्रकृतिक मिश्र व ३ २४, २३, २२ प्रकृति असयत में मिश्र मे २४ प्रकृतिरूप असंयत मे मिश्र मे २४ प्रकृति ६ प्रकृतिक एव असयम मे २४, २२ व प्रकृतिक रूप एव असयत मे २४, २२ प्रकृतिरूप २३, २२ प्रकृतिरूप ६५५ संदष्टि गति उदय स्थानगत प्रकृति सख्या गति उदयस्थानगत प्रकृति संख्या का विवरण का विवरण मनुष्य २०, २१, २५, २६, २७, २८, मनुष्य २०, २१, २५, २६, २७,२८, २९, ३०, ३१,६ व १ प्रकृति २६, ३०, ३१, ६ व ८ प्रकृति कायमार्गणा सस्वस्थान गत कार्यमार्गणा सत्त्वस्थानगत संदृष्टि त्रसकाय प्रकृति सख्या का विवरण सकाय प्रकृति संख्या का विवरण ६३, ९२, ६१,६०,८८, ६३, ६२, ६१,६०,८८, ८४, ८२, ८०,७६, ७८, ८४,८२, ८०,७६, ७८, ७७, प्रकृतिक ७७, १० व ९ प्रकृतिक ६५७
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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