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१४, वर्ष ४६, कि.१
अनेकान्त
सुलोचनाचरित प्राकृत में लिखा गया था इसका ६. जयोदय महाकाव्य-पंडित भूरामल विश्वास आचार्य जिनमेन और महाकवि धवल के उल्लेखों ये सभी संस्कृत रचनायें हैं, जिनकी विभिन्न पाहसे भी दृढ होता है। उद्योतनसूरि की कुवलयमाला से लिपियां ग्रन्थ भण्डारों मे उपलब्ध है। पांच वर्ष बाद लिखे गये हरिवंशपुराण मे आचार्य जिनसेन अपभ्रंश सुलोचना चरित-अपभ्रश भाषा में ने कहा है कि शील अलंकार को धारण करने वाली और
सुलोचनाचरित लिखे जाने की जो सूचनायें प्राप्त हैं उनके मधुरा महिला के समान कवि महामे- की सुलोचना कथा अनसार ब्रह्मदेवसेन ने गाया छन्द में जयकुमारचरित किसी कवि के द्वारा वणित नही की गई है ? अर्थात् हर लिखा है और तीसरी अपभ्रंश रचना देवसेनगणि की है। कवि ने उसकी प्रशंशा की है
इनमे से प्रथम दो रचनाओं का उल्लेख जिनरलकोष में महासेनस्य मधुरा शीलालंकारधारिणी । है। इनकी प्रतियां पचायती जैन मन्दिर दिल्ली में उपकथा न वणिता केन वनितेव सुलोचना ॥' लब्ध होने की सूचना है तीसरी अपभ्र श रचना प्रसिद्ध महाकवि धवल ने अपने अपभ्र श भाषा के हरिवश- है, जिसका संक्षिप्त परिचय यहा प्रस्तुत किया जा रहा है। पुराण म मुनि रविसेण के पद्मचरित के साय मुनि महासेन देवसेनगणिकृत सुलोयणाचरिउ : द्वारा रचित सुलोचनाचरित का भी उल्लेख किया है- इस कृति को पांच प्रतियों का विवरण डा. देवेन्द्र मुणि महिसेणु सुलोयणु जेण, पउमचरिउ सुरिण रविसेणेण।' कुमार शास्त्री ने दिया है। उनके अनुसार दिगम्बर जैन
इन उल्लेखों से यह तो म्पष्ट है कि कवि महासेन ने नया मन्दिर धर्मपुरा, दिल्ली में दो प्रतिया आमेर शास्त्र सुलोचनाचरित लिखा था। आठवी शताब्दी के पूर्व महा- भण्डार, जयपुर (अब श्री महावीर जी) एव एक प्रति सेन नामक कवि किस भाषा के थे और उन्होने सुलोचना दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, नागौर मे उपलन्ध है। चरित किसमें लिखा था, यह स्पष्ट नही है। किन्तु मभव- देवसेनगणि की कृति सुलोचनाचरिउ का परिचय देने तया यह रचना प्राकृत में लिखी होनी चाहिए। क्योंकि से पूर्व सलोचना कथा को सक्षेप मे ज्ञात कर लेना आवआठवी शताब्दी के पूर्व अपभ्रा की अपेक्षा प्राकृत की श्यक है। राजा श्रेणिक ने जब गौतम गणधर से इस अधिक समर्थ प्राकृत कथाएं लिखी गई हैं। यहाँ यह भो सलोचना कथा को सुनना चाहा तो उन्होंने जो जयकुमार ध्यान में लेने योग्य बात है कि अपभ्रश सुलोचना चरित और सुलोचना का चरित सुनाया वह सक्षेप में इस प्रकार के कवि देवसेनगणि (१वी सदी) ने जिन पूर्व कवियों के है। नाम गिनाये है, उनमे इन महासेन का नाम नहीं है। संक्षिप्त कथा वस्तु :-राजा श्रेणिक को कथा
सुलोचनाचरित मे प्रमुख रूप से सुलोचना के स्वयवर, सनाते हुए गौतम गणधर कहते है कि भगवान वृषभदेव उसकी पति भक्ति, उसके शील, धर्म, उसके पति जयकुमार के २४ गणधर थे, ये सभी सातों ऋद्धियो से सहित थे और के पराक्रम और धर्मपरायणता आदि कुछ ऐसे प्रसग हैं सर्वज्ञ देव के अनुरूप थे। इनमे इकहत्तरवों सख्या को जो कवियो को काव्य लिखने के लिए आकर्षित करते रहे प्राप्त करने वाले गणधर जयकुमार थे। उनकी संक्षिप्त है। प्राकृत की मूल रचना तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु कथा इस प्रकार है। सस्कृत और अपभ्रंश मे इस कथा को लेकर निम्न प्रमुख जम्बू द्वीप के दक्षिण मे कुरुजांगल नाम का विशाल रचनायें उपलब्ध है :
देश है। उस देश में हस्तिनापुर नाम का एक नगर है । १. महापुराण -(पर्व) गुणभद्र
उस नगर का राजा सोमप्रभ था। उस राजा की लक्ष्मी. २. सुलोचना नाटक - विक्रान्तकौरव) हस्तिमल्ल वती नाम की अत्यन्त सुन्दर पतिव्रता स्त्री थी। लक्ष्मी३. सुलोचनाचरित -वादिचन्द्र
मति व सोनप्रभ के जयकुमार नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। ४. जय कुमारचरित -बछा कामराज
राजा सोनप्रभ के और भी चौदह पुत्र थे तदन्तर राजा ५. जयकुमारचरित -ब्रछा प्रभुराज
सोनप्रभ अपने बड़े पुत्र जयकुमार को राज्य सौंपकर अपने