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The Prakrit of the sutras, the Gathas as well as of the commentary, is Saursenunfluenced by the order Ardhamagdhi on the one hand and the Maharashiri on the other, and this is exactly the nature of the language called 'Jain Saurseni'
.. Dr Hiralal (Introleuon of षट् खंडागम P IT') पटखण्डागम के सम्पादक और अपनी पीढ़ी के मान्य विद्वान पोडत फलचन्द शास्त्री के विचार यहां दिए जा रहे हैं ।
'जो ग्रन्थ हस्तलिखित प्रतियों में जैसा प्राप्त हो, उसको आधार मानकर उसे वैसा मुद्रित कर देना चाहिए । हमको यह अधिकार नहीं है कि हम उसमें हेर फेर करें। आप अपने विचार लिख सकते हैं या पाद टिप्पण म अपना सुझाव द सकते हैं । मूल ग्रन्थ बदलवाने का आपको अधिकार नहीं है । उपस आम्नाय की मर्यादा बनाने में सहायता मिलती है और मृन आगमों की सुरक्षा बनी रहती है ।
वेदों के समान मूल आगम प्राचीन है । वे व्याकरण के नियमों से बंधे नहीं हैं । व्याकरण के नियम बाद में उन ग्रन्थों के आधार पर बनाये जाते हैं।
__ - पं० फूलचन्द सिद्धान्त शास्त्री
__बनारस वाले हस्तिनापुर प.. बलभद्र जी का मुख्य आरोप यह रहा है कि हमने उनके किमी पत्र का उत्तर नहीं दिया है । हम वीर सेवा मन्दिर से दिये गये उत्तरों को पाठकों की जानकारी के लिए यहां उद्धृत कर रहे हैं :
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