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जानकारी ली थी तो उन विद्वानों ने पाठ भेद का मामला बताया । बारामती में जब आपने जानना चाहा कि क्या कुन्दकुन्द भारती द्वारा प्रकाशित समयसार उपलब्ध प्राचीन ग्रन्धों में से किसी भी एक ग्रन्थ के अनुरूप है तब आपको भावनगर से 52 वर्ष पूर्व यह प्रकाशित 'समयमार'' ग्रन्थ दिखाया गया था । पण्डित जी के अनुसार उस प्रति में सभी पाठ कुन्दकुन्द भारती से प्रकाशित ग्रन्थ के अनुरूप पाये गये थे।
कुन्दकुन्द भारती द्वारा प्रकाशित “समयसार'' ग्रन्थ के अगलेख "मुन्नड़ि' शीर्षक में दिये गये तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि यह ग्रन्थ किसी भी प्राचीन समयमार ग्रन्थ के अनुरूप नहीं है, फिर भी जैसा कि पण्डित बलभद्र जी ने उपगक्त पत्र में लिखा है कि कन्दकन्द भारती में प्रकाशित समयमार भावनगर में प्रकाशित ग्रन्थ क अनुरूप है, और आपन इसकी पुष्टि कर ली है ता कृपया हमाग मार्गदशन करन की कृपा करं ताकि वार सवा मन्दिर वस्तुस्थिति र अवगत हा जाय ।
माभिवादन सलग्न : एक
आपका, प्रतिष्ठा में.
महासचिव माननीय साह, अशोक कुमार जैन. नयी दिल्ली
समयसार क विषय में ही आदरणीय माह रमशचन्द्र जैन का 16-3 - 93 का पत्र हमें मिला था जिसका उत्तर वीर संवा मन्दिर की ओर से 17- 3 - 493 को उन्हें भेजा गया । पत्र इस प्रकार है :