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आचार्य श्री के उक्त प्रवचन के सम्बन्ध में तत्काल ही एक पत्र कुन्दकुन्द भारती के अध्यक्ष साहू अशोक कुमार जैन की सेवा में वीर सेवा मंदिर की ओर से भेजा गया जो इस प्रकार है :
15 अप्रैल, 93 आदरणीय साहूजी,
सादर जय जिनेन्द्रदेव की । __गत माह समयसार विवाद के सम्बन्ध में 15-20 दिनों बाद बाहर से वापस आने पर आपने बात करने को कहा था। इस बीच 3 अप्रैल को महाराजश्री का प्रवचन इस सम्बन्ध में हुआ । जो जानकारी मुझे जैन-अजैन मित्रों से जितनी मिली, आपके अवलोकनार्थ संलग्न है ।
प्रवचन में लगाये गये सभी आरोप निराधार तो हैं ही, पं. पद्मचन्द शास्त्री के विरुद्ध की गयी टिप्पणी विशेष रूप से विचारणीय है ।
1 क्या किसी विद्वान् को खामोश करने का यही तरीका है ? 2 क्या शास्त्री जी का निरादर उचित है ? 3 क्या शास्त्री जी किसी के कहने पर लेख लिख सकते हैं ?
जैन समाज के नेता, कुन्दकुन्द भारती के अध्यक्ष, वीर सेवा मन्दिर के संरक्षक तथा अग्रज के नाते आपके मार्गदर्शन की अपेक्षा है ।
सादर, संलग्न : ।
आपका प्रतिष्ठा में, साहू श्री अशोककुमार जैन महासचिव अध्यक्ष कुन्दकुन्द भारती
इसके पश्चात् 10 मई 1993 को वीर सेवा मन्दिर की कार्यकारिणी की बैठक में महाराज श्री के उक्त प्रवचन पर विचार विमर्श हुआ और
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