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इसमें क्या गलती है भेजो, आज तक नहीं भेज सके । तीन महीनों से उनको चिट्ठियाँ लिखी, कोई एक शब्द उत्तर देने को तैयार नहीं है और इतने कषायवश होकर उन्होंने अपशब्द तक उसमें लिखा है, जिसको बोल भी नहीं सकते । तो आप (वीर सेवा मन्दिर के) सदस्यों से मेरा कहना है कि या तो आप सिद्ध कर दीजिए, या इस्तीफा दे दीजिए और दोनों नहीं कर सकते तो मैं १०-२० हजार आदमियों को बुलाकर प्रस्ताव पास करुंगा । तब आपकी कोई स्थिति इधर उधर की नहीं रहेगी। ये मेरी आज चेतावनी है और आपको स्पष्ट कहना है। उन्होंने ६-६ लेख अनेकान्त में दिये जो बहुत ही घटिया बात है ।
१९७४ में भी शान्तिलाल कागजी इत्यादि ने मेरे खिलाफ बहुत परिश्रम किया और उन्होंने बहुत नाना प्रकार के बाल आश्रम में मुझे तकलीफ भी दी । मैंने क्षमा कर दिया था । इतना तक लिखा कि अनेकान्त में कि कुन्दकुन्द भारती को जो दान दिये गये हैं वो अन्याय उपार्जित धन है और वीर सेवा मन्दिर को जो दान दिये गये हैं न्याय उपार्जित । ये शान्तिलाल कागजी और पं० पद्मचन्द के धन्धे हैं । इनसे सतर्क रहो । और यदि ये लोग १०-१५ दिन के अन्दर इस समस्या का हल नहीं करते हैं तो मैं समाज के चारों तरफ से लोगों को भी बुलाऊँगा
और उनके खिलाफ प्रस्ताव पास होगा । और जो पं० बलभद्र जी कानूनी कार्यवाही करेंगे उसकी भी जिम्मेदारी आपकी होगी । आज मैं स्पष्ट कर रहा हूं, आज तक चुप बैठे हैं अब चुप नहीं बैठ सकते ।"
(प्रो० खुशालचंद गोरावाला जैन साहित्य के पिछली पीढ़ी के शेष रहे मूर्धन्य विद्वानों में से हैं । भगवद्कुन्दकुन्दाचार्य की अमर कृति समयसार के मूल पाठ में पूज्य आचार्य राष्ट्रसंत विद्यानन्द मुनि के मार्ग-दर्शन में कुन्दकुन्द भारती में प्राकृत व्याकरण के आधार पर किए गए संशोधनों के विषय पर आचार्य श्री के साथ उनकी चर्चा हुई थी। उपर्युल्लिखित भेंट-वार्ता इस संबंध में उनकी मनोव्यथा को उजागर
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