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"कसायपाहुड़ सुत्त" [सम्पादक-पं० होरालाल सि० शास्त्रो]
-शुद्धि-पत्रनिर्माता-७० स्व. रतनचन्द एवं पं. नेमिचन्द मुख्तार, सहारनपुर
प्रेषक-जवाहरलाल जन/मोतीलाल जैन, भीण्डर पंक्ति अशुद्ध द्रव्यम्रयनिक्षेप
द्रव्यप्रेयनिक्षेप उपाघात
उपधात जिस प्रकार
विशेषार्थ-जिस प्रकार जीव अल्प हैं। इसी क्रम से जीव अल्प है और रागभाव के धारक उनसे
विशेषाधिक है। इसी क्रम से
[देखो ज.ध.११३५८-५६] हो जाने पश्चात्
हो जाने के पश्चात् नाकषायों के
नो कषायो के उवढपोग्गलपरियट्ट।
उवड्ढपोग्गलपरियट्ट । आदि-सान्त
सादि-सान्त गया है, स्थितिबन्ध का
स्थिति सत्त्व का अनुत्कृष्ट बन्धप्ररूपणा
अनुत्कृष्ट विभक्ति प्ररूपणा अजघन्य बन्धप्ररूपणा
अजघन्यविभक्ति प्ररूपणा बन्ध प्ररूपणा
विभक्ति प्ररूपणा बन्ध-काल प्ररूपणा
विभक्तिकालप्ररूपणा होती है अजघन्यबन्ध
होती है और जघन्यस्थितिबन्ध नवमगुणस्थान के
अन्तसमय में होता है । अजघन्यबन्ध स्थितिबन्ध के
स्थितिविभक्ति के स्थिति के बन्धक
स्थितिविभक्ति वाले
[देखो ज.ध. ३३५६-६०] स्थिति बन्ध का
स्थिति विभक्ति का बन्धकाल
विभक्तिकाल उत्कृष्ट बन्ध
उत्कृष्ट विभक्ति स्थितिबन्ध वाले
स्थिति विभक्ति वाले शेल समना
शैल समान १६ दारुस्थनीय
दारुस्थानीय अर्थपद उसे
उसे अर्थपद
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१८३ १८८
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सुत्ताण्ण ज्जहा अनुपास कर
सुत्ताण जहा अनुपालन कर
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