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________________ २० х а а а "कसायपाहुड़ सुत्त" [सम्पादक-पं० होरालाल सि० शास्त्रो] -शुद्धि-पत्रनिर्माता-७० स्व. रतनचन्द एवं पं. नेमिचन्द मुख्तार, सहारनपुर प्रेषक-जवाहरलाल जन/मोतीलाल जैन, भीण्डर पंक्ति अशुद्ध द्रव्यम्रयनिक्षेप द्रव्यप्रेयनिक्षेप उपाघात उपधात जिस प्रकार विशेषार्थ-जिस प्रकार जीव अल्प हैं। इसी क्रम से जीव अल्प है और रागभाव के धारक उनसे विशेषाधिक है। इसी क्रम से [देखो ज.ध.११३५८-५६] हो जाने पश्चात् हो जाने के पश्चात् नाकषायों के नो कषायो के उवढपोग्गलपरियट्ट। उवड्ढपोग्गलपरियट्ट । आदि-सान्त सादि-सान्त गया है, स्थितिबन्ध का स्थिति सत्त्व का अनुत्कृष्ट बन्धप्ररूपणा अनुत्कृष्ट विभक्ति प्ररूपणा अजघन्य बन्धप्ररूपणा अजघन्यविभक्ति प्ररूपणा बन्ध प्ररूपणा विभक्ति प्ररूपणा बन्ध-काल प्ररूपणा विभक्तिकालप्ररूपणा होती है अजघन्यबन्ध होती है और जघन्यस्थितिबन्ध नवमगुणस्थान के अन्तसमय में होता है । अजघन्यबन्ध स्थितिबन्ध के स्थितिविभक्ति के स्थिति के बन्धक स्थितिविभक्ति वाले [देखो ज.ध. ३३५६-६०] स्थिति बन्ध का स्थिति विभक्ति का बन्धकाल विभक्तिकाल उत्कृष्ट बन्ध उत्कृष्ट विभक्ति स्थितिबन्ध वाले स्थिति विभक्ति वाले शेल समना शैल समान १६ दारुस्थनीय दारुस्थानीय अर्थपद उसे उसे अर्थपद л л л л л л л л л л л о е १५६ २४ १६६ १८३ १८८ १२ सुत्ताण्ण ज्जहा अनुपास कर सुत्ताण जहा अनुपालन कर १९२ १४
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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