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________________ १०, वर्ष ४५, कि० ३ का महत्व बताना है। कथा का मूल यद्यपि 'यशस्तिलक' तथा वृहत्कथाकोष में पाया जाता है पर उसमें पर्याप्त परिवर्तन और परिवर्धन है । अंगी रस शान्त है और नैषध की तरह प्रत्येक लम्ब के अन्त में लम्ब प्रशस्ति दी गई है। विषय के आधार पर सर्गों के नाम भी दिये गये हैं। थे। दयोदय में गये प्रमाणो से कुछ नवीन पचनस्यादि महाराज श्री प्रखर पाण्डित्य के धनी स्थान-स्थान पर वेद उपनिषदादि के दिये यह स्पष्ट है, सूक्तियों का तो यह भण्डार है। रामों की रचना भी महाराज श्री ने की है" की कथाएं भी यहाँ देखी जा सकती है । कथावस्तु इस प्रकार है। उनमें गुणवाल सेठ रहता था, जिसकी पुत्री का नाम दिया था। दो मुनिराजों ने एक बालक (सोमदत्त) को कूड़े के ढेर के पास खा बडे मुनि ने कहा कि यह विषा का पति होगा। तथा उसकी कथा इस प्रकार कही - यह पहले मृगसेन धीवर था, मुनि से पहली मछली न पकड़ने के व्रत से यहाँ के सेठ का पुत्र हुआ है मृगसेन की पत्नी विधा हुई है (प्रथम द्वितीय लम्ब) गुणपाल ने यह सुना तो उसे मारने का प्रयत्न करने लगा । पहले उसने चाण्डाल के द्वारा (तृतीय लम्ब) फिर पत्र भेजकर (चतुर्थ लम्ब) अनन्तर चण्डी के मन्दिर में मरवाने का प्रयत्न किया, पर सोमदत्त बचा रह गया, उल्टे उसका सगा पुत्र मारा गया और विषा का विवाह भी सेठ की अनुपस्थिति में उसके पुत्र ने सोम दत्त से कर दिया (पंचम लम्ब) । सेठ सेठानी ने विषमिश्रित लड्डुओं से उसे मारना चाहा पर बदले में वे दोनों मारे गये (षष्ठ लम्ब) रहस्य खुलने पर राजा ने भी अपनी पुत्री और आधा राज्य सोमदत्त को दिया। अन्त में सोमदत्त ने दीक्षा लेकर मोक्ष पद पाया । अन्तिम मंगल के साथ काव्य समाप्ति । महावीर तोथंकर चम्पू" : - महावीर तीर्थङ्कर चम्पू के रचयिता श्री परमानन्द वैद्य रत्न ( पाण्डेय) हैं । महावीर के २५०० वें निर्वाणोत्सव पर पाण्डेय जी ने यह काव्य रचा है। श्री पाण्डेय का परिवार राजकुल से सम्बन्धित रहा। वदरिकाश्रम (गढ़वाल) के जैन मन्दिर में आने जाने के कारण वे जैन अनेकान्स धर्म से प्रभावित हुए" वर्तमान में वे दिल्ली बासी हैं। श्री पाण्डेय मुनि विद्यानन्द जी के साथ वदरीनाथ की यात्रा में गये थे। लेखक ने आयुर्वेद सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । उनकी महत्वपूर्ण चम्पू रचना 'गणराज्य चम्पू' है, जो भारतीय गणतन्त्र की रजत जयन्ती के उपलक्ष्य में लिखा गया था । उक्त चम्पू मे संस्कृत के साथ ही हिन्दी अनुवाद (गद्यपद्यमय) दिया गया है । कथावस्तु को यद्यपि कवि ने बांटा नहीं है पर प्राक्कथन लेखक डा० कर्णसिंह के अनु सार इसके पूर्वार्ध में २४ तीर्थंकरों ओर उत्तराधं में महावीर का चरित्र वर्णित है । ग्रन्थारम्भ में दिल्ली मे लाल किले पर २५०० वें निर्माणोत्सव पर हुई दिगम्बरो और श्वेताम्बरों, स्थानक वासियों की गोष्ठी की चर्चा आगे, दिल्लीस्य लालकिले की स्थापना, तीर्थङ्करों का तीर्थंङ्करत्व एवं उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। पुस्तक के १/३ भाग में मात्र कथा की उपस्थापना है । आगे १/३ भाग मे महावीर का चरित्र चित्रित है। शैली आधुनिक है तथा दिगम्बर और श्वेताम्बरों के मतभेदों का भी जगह-जगह उद्घाटित किया गया है। आधुनिक संस्कृत गीतिकाओ के लगभग ५ गीत दिये गये हैं तथा सुकरात, जग्मुस्त कथ्यूशिय आदि के समान महावीर को कान्तिवाहक बताया गया है। आगे १/३ भाग में जैनधर्म, देशभूषण महाराज सुपार्श्वनाथ पंचक, मुनि विद्यानन्द, सुशीलकुमार, ० कुमारी कौशल आदि का परिचय दिया गया है । अन्त में कहा गया है कि महावीर की शान्ति काति के बिना देश का कल्याण नहीं हो सकता । भाषा सरल सरस और समास रहित है। अनुप्राश की छटा दर्शनीय है । साधारण पाठक भी इसे समझ सकता है । अध्ययन से पता चलता है कि लेखक ने श्वेताम्बर साहित्य का अध्ययन अधिक किया है। परम्परा भेद स्पष्ट कर दिया गया है, यह अच्छी बात है, अनेक चित्र भी है। रचना प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है । वर्धमान चम्पू : वर्तमान में रचित जंन चम्पू काव्यों में वर्धमान चम्पू
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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