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________________ ३०, बर्ष ४५, कि० २ अनेकान्त अंतराय कर्म अंत किये तैं अनंत बल भयो मोह मर्दन अनंत सुख थपनौ। जयवंत होहु असे जग में अनंतनाथ पायो तिन्हि सदा को गमायौ रूप अपनी ॥१४॥ श्री धर्मनाथ स्तुति सवैया ६२---गुन कौं अनंत जाके गन फन पती थाके रसना सहस करि पारु नहीं पायो है। घातिया करम चारि आठ दश दोष टारि सकति सम्हार भवभमन नसायो है। परम अतीन्द्रिय ज्ञान प्रगट्यो सहज आन अति सुख दान परधान पद पायो है। असे धर्मनाथ लिये मु:ति वधू सो साथ जाको देवीदास हाथ जोरि सोसु नायो है ॥१५॥ श्री शांतिनाथ स्तुति तेईसा-सुद्धोपयोग अतीन्द्रिय भोग लह्यौ तिन्हि कर्म कलंक निवारे। एक समै (मय) महि जे सर्वज्ञ सही सब लोक विलोकन हारे । प्रजत जे भवि या जग में तिन्हि पून्य उदय पद उत्तम धारे। ते भगवंत अनादि अनंत बसौ उर सांति जिनेस हमारे ॥१६॥ श्री कुंथनाथ स्तुति। सवैया ३१-जाके गुन ध्यावे ते सु पावै परमारथ के जाकै जस गावै कोटि तीरथ के किये मैं । जाके बैन सने नैन खुले उर अंतर के जाको नाम लेत फल महादान दिये मैं । जाकी करै बंदना के पाप को निकंदना है देखे रूप सख ज्यौ अतीन्द्रिय रस पिये मैं । तेई कुंथनाथ जू साथ मोक्ष मारग के देवीदास कहै जे सुवसो मेरे हिये मै ।।१७।। श्री अरहनाथ स्तुति सवैया ३१-मोह रिपु बांधि तिन्हि सुभट कषाय साधे धोधे मनु मदन विलात भयो डरि के। आपने स सहज स्वभाव सुद्ध नौका बैठि पार भये तृष्णा अपार नदो तरि के। लियो पद साहजीक परम अदोष होइ जन्म जरा मरनादि सखा छांडि करि के। बंदना स कॉर्ज अंसे अरह जिनेश्वर की होइ के त्रिसुद्ध हाथ जोड़ि सीसु धरि के ॥१८।। श्री मल्य (ल्लि)नाथ स्तुति तेईसा-मारि महाबलवंत हन्यौ सुजन्यो सुख राग विरोध वितोतो। इन्द्रिन को बिसयो विउ(व्यो)पार हतो अति हों दुख कारन लीती। स्वारथ सुद्ध जग्यौ परमारथ कारन खेद सबै जग जोती। मल्य जिनेस असल्य भये तिन्हि आपुन ह अपनी पद चीतो ॥१६॥ श्री मुनि सो(सु)वृत्त स्तुति तेईसा-अरि परिग्रह टारि महाव्रत धारि मिथ्यात्व मिटै दुख भूजौ। सेस नरेस सुरेस सबै जब आनि महां तिन्हिको पद पूजी। जा सम और नहीं जग में सुख कारन देव निरंजन दूजो। प्रान अधार सुधो तिन्हि के जयवंत सदा मुनि सोवत हूजी ॥२०॥ श्री नमिनाथ स्तति तेईसा-ध्यान कृपाण ते कोध निदान हन्यो तिन्ही मान बलो छल लोभा। राज विभति अनित्य लखो सब नीर भरै न रहै जिमि शोभा । (शेष आवरण पृ० ३ पर)
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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