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संग्रहालय गूजरीमहल ग्वालियर में सर्वतोभद्र प्रतिमाएँ
"] श्री नरेश कुमार पाठक
सर्वतोद्रिका या सर्वतोभद्र प्रतिमा का अर्थ है, वह कुषाण काजीन चौमुखी जिन मूतियां कायोत्सर्ग मे खडी है। प्रतिमा जो सभी ओर शुभ या मगलकारी है अर्थात ऐमा जहां हमें समकालीन जैन ग्रन्थो मे जिन चौमुखी मूर्तियों शिल्प खण्ड जिसमें चारो ओर चार प्रतिमाएं निरूपित की कल्पना का निश्चित आधार प्राप्त होता है, वह हो। पहली शती ईसवी मे मथुरा में इसका निर्माण प्रारंभ तत्कालीन और पूर्ववर्ती शिल मे ऐसे एक मुख और बहहुआ, इन मूयिो में चारो दिशाओ मे चार जिन मूपियां मुख शिवनिग एवं यक्ष-यक्षी मूर्तियां प्राप्त होती है, जिनसे उत्कीर्ण है । ये मुनिया या तो एक ही जिन की या अग. जिन चौमुखी की धारणा से प्रभावित होने की सम्भ वना जिनो को होनी है। ऐसी मूर्तियो का चतुविम्ब न हो सकती है। जिन नौमुन्नी पर म्बस्तिक तथा मौर्य चौमुखी और चतुर्मख भी कहा गया है, ऐमी प्रतिमाएँ। शामक अशोक के सिंह एव वृषभ शीर्षक का भी कुछ दिगम्बर स्थलो पर विशेष उल्लेखनीय है।
प्रभाव असम्भव है। अगोक का सारनाथ सिंह शीर्षक
स्तंभ इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है , जिन चौमुखी की धारणा को विद्वानों ने जिन समवसरण को प्रारम्भिक कल्पना पर आधारित और उसमे जि. चौमबी प्रतिमाओ को मुख्यतः दो वर्गों मे हुए विकास का सूचक माना है। पर इस प्रभाव कोव
बाटा गमकता है । पहले वर्ग में ऐसी मूर्तियां है, जिनमें कार करने में कई कठिनाइया है। समवसरण वह देव एक ही जिन को चार मतियां उत्कीर्ण है। दसरे वर्ग की निर्मित सभा है, जहा प्रत्येक जिन कैवल्य प्रालि के
मतियो मे नार अलग-अलग जिन की मूर्तियां है। पहले बाद अपना प्रथम उपदेश देते हैं । समबमरण तीन प्राचीगे
वर्ग की मतियो का उत्कीर्णन लगभग ७वी-८वी शती ई० वाला भवन है। जिसके ऊपरी भाग अष्ट प्रातहार्यों से
मे प्रारम्" हुआ किन्तु दूसरे वर्ग की मतिया पहली शती युक्त जिन ध्यान मुद्रा मे (पूर्वाभिमुख) विराजमान होते
ईसवी में ही बनने लगो थी। मथुग की कुषाण कालीन हैं। सभी दिशाओ के श्रोता जिनके दर्शन कर सकें,
चमुखी मूर्तिया इसी दूसरे वर्ग की है। तुलनात्मक दृष्टि उद्देश्य से व्यतर देवो ने अन तीन दिशाओम भी उसी
में पहले वर्ग को मुनियो की मख्या में बहुत कम है। पहले जिन को प्रतिमा स्थापित की, वह उल्लेख सर्व प्रथम ८वी-हवीं शती ई० के जैन ग्रन्थो म प्राप्त होता है।
वर्ग की मानियो में जिनो का लांछन सामान्यत: नही प्रारम्भिक जैन ग्रन्थो मे चार दिशाओ मे चार जिन के प्रदशित । निरूपण का उल्लेख नही प्राप्त होता, ऐसी स्थिति मे
___केन्द्रीय संग्रहालय गूजरी महल ग्वालियर मे पाच कुषाणकालीन जिन चौमुखी मे चार सबमरण नीधारणा
सर्वतोभद्रिका प्रतिमाए सग्रहीत है। सभी प्रतिमाएं गभग से प्रभावित और उनमें हुए किसी विकास के मूचक नही
११वीं-१ वी शती ई की एव मर्तिकला की दृष्टि से माना जा सकता । :-हवी शतः के ग्रन्सों मे मी समव
उल्लेखनीय है । सग्रीन प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार सरण मे किमी एक ही जिन को चार मतियो के निरूपण का उल्लेख है, जब कि कुषाण कालीन चौमखी कार जलगअलग जिनों को चित्रण किया गया है। सावमरण मे सग्रहालय मे पांच सर्वनोद्रिका प्रतिमा सग्रहीत है। जिन सदैव ध्यानम्थ मुद्रा में आमीन होते है, जब कि इनमे पे चार ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त हुई है। १.वी पाती