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१४. वर्ष ४५, कि०२
अनेकान्त
अभिन्न आदि कहा गया है । इसके अलावा इसमें स्याद्राद को घटित करने के लिए स्यात् शब्द का प्रयोग करना सूचक स्यात् शब्द का प्रयोग भी उपलब्ध है, जैग-- चाहिए। कषाय पाहुड मे स्यात् शब्द के प्रयोग के
गौयमा, जीवा, सिय सासया सिय असासया । सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि यदि स्पात् शब्द के गोयणा दन्वट्ठयाए सासया भावठ्याए असामया।" प्रयोग का जो वक्ता अभिप्राय रखता है और यदि वह
इसी प्रकार भगवती सूत्र में भंगो का उल्लेख भी उसका प्रयोग नहीं करता है तो उसके अर्थ का ज्ञान हो हुप्रा है। गौतम ने महावीर से पूछा कि हे भगवान रत्न जाता है"। प्रभा पृथ्वी आत्मा है या अन्य है ?
कषाय पाहुड में स्यात शब्द के प्रयोग सहित सप्त ___ महावीर ने उत्तर दिया कि"- रत्नप्रभा पृथ्वी स्यात् भगी भी उपलब्ध है-(द्रव्य) स्यात् कषाय रूप है, द्रव्य आत्मा है । रत्नप्रभा पृथ्वी स्पात अवक्तव्य है। इसे सुन- स्यात अकषाय रूप है, द्रव्य अबक्तब्य है, द्रव्य स्यात् कर गौतम को जिज्ञामा होने पर महावीर ने कहा- कषाय और अकषाय रूप है, द्रव्य स्यात् कषाय रूप और अपनी अपेक्षा से आत्मा है पर की अपेक्षा मे आत्मा नही अवक्तव्य है, द्रव्य स्यात् अकषाय रूप अवक्तव्य। हर द्रव्य है। उभय की अपेक्षा से अवक्तव्य है।
स्यात् कषाय रूप, अकषाय रूप और अवक्तव्य है। ज्ञातधर्मकथा" में शुरु नामक परिव्राजक द्वारा किये प्रथम और दूसरे भंग में विद्यमान स्थात् शब्द क्रमश: गये प्रश्नों का उत्तर थावच्चा ने स्थाद्वाद शैली मे दिये है। नोकषाय और कषाय को तथा कषाय और नौकषाय जैसे-ते मंते ! सरिमवयाभक्ष्य या अभक्ष्य? हे शुक विषयक अर्थ पर्यायो को द्रव्य में घटिल करता है। तीसरे सरिसवया भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है।
भग मे यह कषाय और नोकषाय विषयक व्यञ्जन पर्यायों शुक-आप एक है ? दो है ? अनेक हैं ? हे शुक! को द्रव्य में घटित करता है। चौथे भग में स्यात कषाय मैं द्रव्य की अपेक्षा एक और ज्ञानदर्शन की अपेक्षा दो है। और नोकषाय विषयक अर्थ पर्यायों में घटित करता है। इसी प्रकार अनेक प्रश्नों के उत्तर सापेक्ष रूप से दिये पांचवें मंग मे स्यात् द्रव्य मे नोकषायपने को घटित गये है।
करता है। छठवें भंग में स्यात् द्रव्य मे कषायपने को ___ इस प्रकार सिद्ध है कि अर्धमागधी आगम में स्थाद्वाद। घटित करता है। सातवें भंग मे स्यात् शब्द क्रम से कहे का अस्तित्व है।
जाने वाले कषाय, नोकषाय और श्रवक्तव्य रूप तीनों शौरसैनी आगमों में साहित्य में स्याद्वाद
धौ को द्रव्य में अमरूप रहने को सूचित करता है। दृष्टिवाद नामक बारहवे अग के अश रूप में उपलब्ध
कातिकेयानप्रेक्षा में-- कानिकेयानुप्रेक्षा मे अनेषटखण्डागम मे "सिया पत्ता सिया अपज्जत्ता" के रूप कान्तवाद की प्रतिष्ठा की गई है। सभी द्रव्य को अनेमें स्याद्वाद के बीज उपलब्ध है।
कान्तात्मक" कहकर जहाँ एक ओर एकान्तवादियों की ____ आचार्य कुन्दकुन्द के पाहुड में विशेषकर पंचास्ति- मीमांसा की गई है, वही अनेकान्तवाद का अर्थ क्रियाकार और प्रवचनसार में स्थाबाद तक स्यात शब्द का कारी बतलाया है२२ । अनेकान्त को भी अनेकान्तात्मक प्रयोग और सात भगों का नामोल्लेख उपलब्ध है- सिद्ध करते हुए कहा गया है कि जो वस्तु अनेकान्त रूप "सिय अस्थि णात्थि ऽहमं अव्वतव्व पूणो य तत्तिदिम। है, वही सापेक्ष दृष्टि से एकान्त रूप भी है। श्रतनानी दवं सु सत्तभग आदेशवसेणा संभवर्वाद ॥"
अपेक्षा अनेकान्त रूप और नय की अपेक्षा एकान्न रूप है। "अत्यित्ति य णस्थिति य हवदि अवत्तवमिदि पूणो दव्वं । क्योंकि वस्तु निरपेक्ष नहीं होती है। यद्यपि वस्तु नाना
पज्जाएण दु केवि तदुभयमादिट्ठमण्णं वा ।। धर्मों से युक्त है तो भी उसके एक धर्म का कथन किया ___ 'कषाय पाहुड' में भी स्याद् शब्द का प्रयोग उपलब्ध जाता है, क्योंकि उस समय उसी की विवक्षा होती है, है। जैसे-"दम्वम्मि अणुतासेस धम्माण घटावणळं शेष घमाँ की नहीं होती है। सियासहो जोजेन्वो""" अर्थात् द्रव्य में प्रतुक्त समस्त धों यद्यपि कातिकेयानुप्रेक्षा मे स्यावाद सूचक शब्दों का