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जैनधर्म एवं संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में तत्कालीन राजघरानों का योगदान
साहित्य से यह भी पता चलता है कि विम्बमार श्रेणिक जैन माहित्य के अनुसार अजातशत्र कुणिक अत्यधिक मात्र एक विजयी, प्रतापवान् राजा ही नहीं था, अपितु महत्वकांक्षी एवं क्रूर स्वभाव का राजा था। कुणिक वह एक कुशल शासक एवं निपुण राजनीतिज्ञ भी था। महावीर का भक्त था और अपने कुलधर्म जैनधर्म का ही उसने एक नीतिपरायण आचारसंहिता के प्राधार पर अनुयायी था। केम्ब्रिज हिस्ट्री के अनुसार उसने जैन शासन किया था, अतएव उसके राज्य में न तो किसी श्रावक के व्रत धारण किये थे। कुणिक गौतम बुद्ध का भी . प्रकार की अनीति थी और न किसी प्रकार का भय था। आदर करता था, परन्तु वह उनका भवन या अनुयायी प्रजा भली भांति सुख का अनुभव करती थी। वह दया- नही था । बौद्ध साहित्य में उसकी बहुत निन्दा की गई है वान एवं मर्यादाशील था। साय ही दानवीर एवं निमाता और उसे पितृहन्ता कहा गया है। परन्तु, जैन परम्परा में भी था। उसने जैनधर्म और संस्कृति का बहुविधि प्रचार- अजातशत्रु को प्रशसा मिनती है। उसने मूर्तिनिर्माण कला प्रसार तथा विकास किया। उसने सम्मेदशिखर पर्वत पर को प्रोत्साहन दिया और उसके द्वारा महावीर आदि जैन निषिद्यकाएं बनवायी। अगर जैन मन्दिर बनवाये। तीर्थ करो की मूर्तियां बनवाई गयी। इसके अतिरिक्त उसके अनेक स्तूपों का निर्माण कराया एवं अनेक चैत्य आदि द्वारा स्य अपनी मूर्तियां भी बनवाई गयी प्रतीत होती भी उसके द्वारा बनवाये बताये गये हैं। राजगृह के प्राचीन हैं। परखम नामक स्थान से एक राजा की मति मिली है, भग्नावशेषों में श्रेणिक के समय की मूर्तियां आदि भी जिसे डा. जायसवाल ने स्वय अजातशत्रु कुणिक की मूर्ति मिली बताई जाती है।
के रूप में पहचाना है। उनके मतानुमार यह मूति उसी जैन अनुश्रतियों के अनुसार श्रेणिक अपनी प्रिय पत्नी के शासनकाल मे निमित हुई प्रतीत होती है। चलना के प्रभाव से जैनधर्म का भक्त बना था। चेलना कुणिक एक प्रतापी राजा था। वह शासनकार्य में महाबीर की मौसी या ममेरी बहिन थी। महावार का भी अत्यन्त निपुण था। उसने अनेक विषयों में अपने पिता प्रथम उपदेश विपुलाचल पर हुआ था। राजा श्रेणिक की नीतियों का अपनाया। उसने साम-दाम-दण्ड-भेद की परिवार एवं परिकर सहित महावीर की धर्मसभा में
नीति अपनाकर अपने राज्य का अत्यधिक विस्तार किया उपस्थित हुआ एक श्रावकसघ का नेता बना था। रानी
तथा साम्राज्य शक्ति को भी सुदढ़ किया। पिता-पुत्र चेलना श्राविका संघ की मुखिया बनी। यह भी कहा दोनो के शासनकाल में भारत को श्रमण विचारधारायें जाता है कि श्रेणिक ने वर्द्धमान महावीर के समक्ष एक- मध्यएशिया होकर ईरान तक पहुची थी। एक करके साठ हजार प्रश्न उपस्थित किये और महावीर
अजातशत्र के बाद उसका पुत्र उदयी या उदयिन ने उनका सविस्तार समाधान किया था। इन्हीं प्रश्न- मगध की राजगद्दी पर आसीन हुआ। जैन साहित्य में उत्तरो के आधार पर जनवाङमय की रचना की गई। उसके बहुत उल्लेख मिलते हैं और उसका विवेचन एक
श्रेणि क के अभयकुमार, मेघकुमार, वारिषेण; कुणिक महान् जननरेश के रूप में किया गया है । उसने पाटलिश्रादि कई पुत्र थे । अभयकुमार आदि पुत्रो के विरक्त हो पुत्र को बसा !T, और अपनी राजधानी को राजगह से जाने के फलस्वरूप श्रेणिक ने चेजना से उत्पन्न पुत्र कुणिक पाटलितुत्र ले आया । इस नरेश की भी एक प्रस्तर मूति अपरनाम अजातशत्रु को राज्यपाट सौंप दिया। और स्वय मिली बताई जाती है। उदयो के पश्चात शिशुनाग वशीय धर्मध्यानपूर्वक शेष जीवन व्यतीत करने का निश्चय किया। कुछ और उत्तराधिकारियो ने मगध पर शासन किया। राज्यसत्ता प्राप्त होने पर कुणिक ने किसी (देवदत्त) के और वे भी जैनधर्म के भक्त तथा अनुयायी रहे, ऐसा माना बहकाने पर अपने पिता को बन्दीगह मे डाल दिया। जाता है। कालान्तर मे वहीं उसकी मृत्यु हुई। इस तरह धर्मपरायण कालान्तर मे मगध में नंदवश की स्थापना हुई। इस प्रतापी वंश एवं मगध के प्रथम ऐतिहासिक सम्राट वंश का प्रसिद्ध उत्तराधिकारी काकवणं कालाशोक था। श्रेणिक विम्बसार का दुःखान्त हो गया।
वह नंदवश का सर्वाधिक प्रतापी राजा था। खारवेल के