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________________ जैनधर्म एवं संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में तत्कालीन राजघरानों का योगदान डॉ. कमलेश जैन, रिसर्च एशोसिएट -सं. स. वि. वि., वाराणसी वर्तमान बिहार प्रांत का धार्मिक, सांस्कृतिक एवं यही हुए। जिन्होंने इस क्षेत्र में रहकर सम्पूर्ण भारत पर राजनैतिक दष्टि से अद्वितीय स्थान है। प्राचीनकाल में शासन किया। उपलब्ध जैन-जेनेतर सन्दो , पुरातात्विक यह क्षेत्र 'मगध' और 'विदेह' के नाम से प्रसिद्ध होता है . अवशेषों के अनुसार, यहां के कई नरेश जैनधर्म के अनु'मगध' जैनपुराणों में वणित १३ देशों, महाभारत मे यायी, अनुरागी एवं भक्त रहे हैं। उन्होने इस धर्म को न उल्लिखित १८ महाराज्यों, प्राकृत भगवती सूत्र के १६ केवल राष्ट्रीय-धर्म के समान प्रतिष्ठा दी, वरन उसके जनपदों तथा वर्धमान महावीर एवं बुद्ध कालीन ६६ महा- सरक्षण, उद्धार एव प्रचार-प्रसार मे श्री महनीय योगदान जनपदों में परिगणित किया गया है। प्राग-ऐतिहासिक दिया है । इसकी प्रभावना के लिए उन्होने महत्वपूर्ण कार्य काल से मगध और विदेह श्रमणधर्म/जैनधर्म और किये हैं । अत आधुनिक बिहार प्रांत का धार्मिक, राजसंस्कृति के प्रधान केन्द्र रहे हैं। वर्तमान में उपलब्ध राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष योगदान जैनधर्म, साहित्य और संस्कृति का, प्राचीन काल में इसी है। क्षेत्र में सर्वाधिक संरक्षण, पोषण एव संवर्धन हा। जैन प्रस्तुत निवन्ध में आधुनिक बिहार प्रान्तीय तत्कालीन परम्परा के २४ तीर्थंकरों में से २२ तीर्थंकरो ने इसी क्षेत्र प्रमुख जैन राजाओ, राज्य से सम्बद्ध प्रमुख व्यक्तियों एवं में निर्वाण प्राप्त किया। छह तीथंकरो के गर्म, जन्म, ज्ञान उनके द्वारा जैनधर्म, साहित्य एम सस्कृति के संरक्षण तथा और निर्वाण कल्याणक भी यहीं हुए। प्रचार-प्रसार हेतु किए गये उपायो का सक्षिप्त आकलन यह वही पवित्र भूमि है, जहां पर वर्धमान महावीर किया गया है। एवं तथागत बुद्ध जैसे महान् पुरुषों का जन्म हुआ। इसी प्रायः ढाई हजार वर्ष पूर्व जिनधर्म या श्रमणधर्म की को उन्होने अपनी साधना तथा कर्मभूमि बनाया। और सर्वाधिक प्रभावना वद्धमान महावीर द्वारा हई। जैनधर्म, उत्कृष्ट, नैतिक, परमोपयोगी, सर्वजनग्राह्य, लोककल्याण- जन साहित्य एव जन-संस्कृति का जो स्वरूप मान उपकारी, सर्वजनहितकारी विचारों एवं क्रियाओं से शताब्दियों लब्ध है, उसका सबसे अधिक श्रेय वढमान महावीर को तक प्रभावित किया तथा आज भी हम उनके इस अवदान हो जाता है। वर्द्धमान का जन्म वैशाली के से प्राप्लावित तथा अनुप्राणित हैं। यह बिहार प्रांत उन्ही हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ इस कुल के मुखिया थे। ऐतिहासिक महान् आत्माओं की कर्मस्थली है, जिनके उनको माता विशला नैदेही गैशाली गणतत्र के शासक पावन उपदेशों ने न केवल भारतवर्ष को, अपितु समस्त चेटक की बेटी थी (एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार त्रिशला संसार को अहिंसात्मक आचरण का प्रशस्त मार्ग दिखाया। चेटक की बहिन थी)। महावीर ने अनेक वर्षों तक इसी इस क्षेत्र के ऐतिहासिक राजाओं, महाराजाओं एवं बिहार प्रान्त के (दक्षिण बिहार) पर्वतीय तथा जांगलिक सम्राटो ने भी शताब्दियों तक देश-विदेश की राजनीति को प्रदेशों में कठोर आत्म साधना की। उनका प्रथम उपदेश प्रभावित किया है। प्राचीन भारतीय इतिहास मे शिशु- राजगृह या पन्चशेलपुर के विपुलाचल पर हुमा। मगध नागवश लेकर गुप्तवश तक के सभी प्रभावशाली सम्राट सम्राट श्रेणिक बिम्बसार उनका प्रमुख श्रोता था। इन्द्र
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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