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२६, वर्ष ४५, कि०४
अनेका
नौ पद्य हैं यह स्तवन 'अनेकान्त' वर्ष १२ किरण : पृष्ठ भट्टारक श्री भूषण ने 'शान्तिनाथ पुराण' में भगवान २५१ में मुद्रित हुआ है।
शान्तिनाथ का जीवन अकित किया है जिसकी पद्य संख्या
४०२५ बतलाई गई है। प्रशस्ति में कवि ने अपनी पद्र १४. शान्तिनाथ पुराण : कवि शाह ठाकुर
परम्परा के भट्टारकों का उल्लेख किया है। कवि श्री खंडेलवाल जाति और लुहाढिया गोत्र के देव शास्त्र, गुरु
भषण ने इस ग्रन्थ को संवत् १६५६ में मृगशिरा के महीने भक्त, विद्या विनोदी विद्वान थे। मल संघ सरस्वती गच्छ
की त्रयोदशी को सौजित्र में नेमिनाथ के समीप पूरा किया के भट्टारक प्रभाचन्द्र, पद्मनन्दी, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र, ". प्रभाचन्द्र चन्द्रकीति और विशालकीति के शिष्य थे।
इसके अतिरिक्त शान्तिनाथ विषयक अन्य रचनाएँ, कवि ने 'शान्तिनाथ पुराण' ग्रन्थ की रचना की, जो
ज्ञानसागर (संवत् ६५१७) अचेल गच्छ के उदय सागर
(ग्रंथान ७२००) वत्सराज (हीरा० हस० जामनगर १६१४ कवि ने उनमें शान्तिनाथ का जीवन परिचय अकित किया प्रकाशित) हर्ष भषण गणि, कनकप्रभ ग्रन्थान ४०५) है। जो चक्रवर्ती कामदेव और तीर्थङ्कर थे। कवि ने यह
रत्नशेखर सूरि (ग्रन्थान ७०००) भट्टारक शान्तिकीर्ति, विक्रम संवत् १६५२ भाद्र शुक्ला पंचमी के दिन चकत्ता
गुणसेन, ब्रह्मदेव, ब्रह्म जयसागर और अजितप्रभ सूरि की बंश जलालुद्दीन अकबर बादशाह के शासनकाल में, दूढा
मिलती है। हर देश के कच्छप वंशी राजा मानसिंह के राज्य में
धर्मचन्द्र गणि ने 'शान्तिनाथ राज्याभिषेक' और लुवाइणपुर में समाप्त किया। उस समय मानसिंह की
हर्षप्रमोद के शिष्य आनन्दप्रमोद ने 'शान्तिनाथ विवाह' राजधानी प्रामेर थी।
नामक रचनाएँ भी लिखी हैं। मेघविजय गणि (१८वीं १५. शान्तिनाथ पुराण : भट्टारक श्री भूषण- शती) का शांतिनाथ चरित काव्य उपलब्ध है जो नैषधीय यह काष्ठा संघ नन्दि, तटगच्छ और विद्यागण में प्रसिद्ध चरित के पादों के आधार पर शान्तिनाथ का जीवन होने वाले रामसेन, नेमिसेन, लक्ष्मीसेन, धर्ममेन, विमल- चरित प्रस्तुत करना है"। सेन, विशालकीति और विश्वसेन आदि भट्टारकों की महाकवि असग की अन्य कृति 'लघु शान्तिनाथ पुराण' परम्परा में होने वाले भट्टारक विद्याभूषण के पट्टधर भी मिलती है जिसमें १२ सर्ग है। यह लगता है कि कवि थे ।
के १६ सत्मिक शान्तिपुराण का लघुरूप है"।
सन्दर्भ १. निज रत्न कोश-पृष्ठ ३१६ ।
१५४४ की एक मूर्ति जो सूरत के बड़े मन्दिर मे
विराजमान है। २.जैन साहित्य का वृहत् इतिहास भाग ६, पृ. ११०।
७. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग 2, पृ. ५३७ । ३. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २, पृ. ४०४ ।
८. वही-पृ० ५३९ । ४. श्री मत्प्रभाचन्द मुनीन्द्र पट्टे,
६. वही-पृ० ५३६ । शश्वत प्रतिष्ठा प्रतिभागरिष्ठः।
१०. शान्तिनाथ पुगण : श्री भूषण (कवि प्रशस्ति पद्य विशुद्ध सिद्धांत रहस्य रत्नरत्नाकरानन्दतु पद्मनदी।। ४६२-४६३)।
-शुभचन्द पट्टावली ११. जिन रत्नकोश पृ० ३८०.३८१ । ५. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २, पृ. ५०८-५०६ १२. जैन साहित्य का वृहद् इतिहाल पृ. ११० भाग ६ । ६. मल्लिभूषण के द्वारा प्रतिष्ठित पद्मावती की सवत् १३. जिन रत्नकोश पृ० ३३६ ।