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अयषवला पु० १६ का शुद्धिपत्र
पंक्ति
प्रशुद्ध
पृष्ठ १४२ १४३ १४५ १४७
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३ (६२) १४५ भाग १५ लिए सयोगी के वली लोहार्या तथा अयोगी केवली स्वस्थान सयोगी केवली द्वारा रहते हुए निक्षिप्त प्रकृति क्रिया के भेदरूप साधन स्थिति सत्कर्म की तत्काल उपलभ्यभान स्थिति के अपेक्षा वृद्धि जाते हैं। कितने ही आचार्य कहते हैं:अनुभाग के वश से कपाट समुद्घात में ठहर कर
३ (६२) १४५ भाग १४ पृ. २६५ लिए तथा सयोगकेवली लोहार्य तथा सयोग केवली xxx रहते हुए स्वस्थासयोग केवली द्वारा निक्षिप्त प्रवृत्ति रूप भिन्न क्रिया के साधन तत्काल उपलभ्यमान स्थिति सत्कर्म के
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२०.२१
अपेक्षा अथवा वृद्धि जाते हैं ऐमा कितने ही आचार्य कहते है। अनुभागघात के वश से स्वस्थान केवलिपने में (यानि मूल शरीर मे) ठहर कर समुद्घात में ग्रहणकर अनुभाग घात जोगणिरोह सुहमणिगोद
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इसलिए समुद्घात में एकसमय द्वारा अनुभाग घात जीगणिरोह सुहमणिगाद हाइव्यपूर्व स्पर्धकों का) असंख्यातगुणहीन ३७० क्यो क
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समयपुर असंखेज्जगुणाए सेढीए।
पूर्वस्पर्धकों का) असंख्यातगुणे
३७० शंका-इसका क्या कारण है? समाधान-क्योंकि समयापुत्व असखेज्जगणहीणाए सेढीए । कारण देखो--धवल १३/८५, क. पा. सु. पृ. ९०५ तथा ज. घ. १६/१७४ का यहीं पर प्रथम पेरा] समय की अन्तिम अपूर्व कृष्टि से विशेष मात्र हीन है। असंख्यातगणी हीन श्रेणी रूप से असंख्यातगुणी हीन-श्रेणी पल्योपम
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१६-२०
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समय मे पहले की अतिम कृष्टि से विशेष मात्र निक्षिप्त करता है । असख्यातगुणी श्रेणिरूप से असंख्यातगणी श्रेणि पाल्योपम