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________________ पाश्वनाथ और पपावती इस प्रकार ये दोनों ही समाजों मे मान्य हैं। खेल में किसी के अभिषेक का मनोहारी दृश्य मन को मानंद देता है। भीमति या मन्दिर की प्रतिष्ठा या पंचकल्याणक महोत्सव कलाकारो पर कौन रोक लगा सकता है? के समय इनका आह्वान अवश्य किया जाता है। तीनों लोक संबंधी जैन विवरण में नागकुमार देवों पद्मावतो जैनों में ही लोकप्रिय नहीं है, अपितु अन्य का विवरण उपलब्ध है। जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं, मतों में भी वे मान्य है। वे निरुपति के बालाजी को प्रिया उसके नीचे सात भूमियाँ और हैं। इनमे से पहली पृथ्वी हैं। कश्मीरी कोल संप्रदाय के ग्रन्थ शारदातिलक मे उनकी के रतनप्रभा नामक भाग मे इन देवों का निवास है। उपासना विधि दी गई है। यह उल्लेखनीय है कि कश्मीर घरणेन्द्र और पद्मावती इनके स्वामी या इन्द्र और इंद्राणी में अशोक ने जैनधर्म का प्रचार किया था ऐसा कथन है। पद्मावती धरणेन्द्र की अग्रमहिषी है। ये एक ही समय कश्मीर के इतिहास से सबधित रचना राजतरगिणी में है। में अनक स्थानों पर अनेक रूप धारण कर सकते हैं । इस जैन मान्यता के अनुसार धरणेन्द्र और पपावती नाग क्षमता को विक्रियाऋद्धि कहा गया है। यही कारण है कि कुमार जाति के देवो के इन्द्र और इन्द्राणी है। इसको वे अनेक भक्तो का कष्ट निवारण कर सकते हैं। सोचते सुचित करने के लिए उने की मूर्ति आधी मानव शरीर के ही ये कहीं भी प्रकट या अदृश्य रूप में आ सकते हैं। ये रूप में तो थाधी सर्प को देह के आकार की बनाई जाती एक साथ सो लोगो का पोषण या मरण कर सकते हैं। है। इस प्रकार का अंकन नागरकोविल के नागराज मदिर धणेन्द्र तो एक सेना को मार गगाने में समर्थ है। दक्षिण के प्रवेश द्वार पर है। यह मदिर किसी समय जैन था। भारत की एक रानी द्वारा आह्वान किए जाने पर उसके पार्श्वनाथ की धातु मूनि आज भी विष्णु के रूप में पूजी पति की रक्षा के लिए उन्होंने एक मायामयी सेना ही खडी जाती है। जैन मन्दिरों में इन शासन देवो को पार्श्व के कर दो थो ऐसा एक प्रसंग मिलता है। इनको आयु दस आसन के नीचे या अलग किमी स्थान पर अथवा मन्दिर हजार वर्ष बताई गई है। अमी गे और सात हजार वर्षों के बाहर स्थापित किया जाता है। इनके ऊचे मु.ट में तक जग कल्याण करते रहेंगे। इनके भवन मदा सगंधित ifra की जाती है। प्रतिमा मकट रहते है । शायद यही कारण है कि इनका आह्वान गुलाब, के ऊर भी हो सकती है। इन पर तीन फणो की छाया चदन आदि सुगधित पदार्थों द्वारा किया जाता है। मत्रभी प्रदर्शित प्रायः होती है। धरणेन्द्र और पद्मावती से शास्त्र के ज्ञाता इस बात को भलीभाति जानते हैं कि बिना श्रद्धा के इन्हें प्रसन्न कर पाना कठिन है। इनसे भिन्न फ्णावली पार्श्वनाथ की मति पर अकित की जाती सबधिन अनेक स्तोत्र, स्तु तया या भवन सस्कृत, हिन्दी, है। सामान्य नियम यह है कि पार्श्व की मूर्ति पर सात कन्नर आदि भाषाओं में विशेष रूप स पद्मावती के सबध फण होने चाहिए। किंतु कहीं-कही पांच फण भी देखे में पाए जाते हैं। देवी पद्मावती को "त्रिफणा" और जाते है जो कि वास व मे सातवे तीर्थदूर सुपार्श्वनाथ की "त्रिनेत्रा" कहा गया है । वे तीसरे नेत्र से यह जान लेती प्रतिमा पर प्रदशित किए जाते है। दोनो तीर्थदूरो की है कि कहां क्या हो रहा है। इस क्षमता को जनधर्म म प्रतिमाओ को पहिनान उनके पादासन पर बने चिह्नो से अवधिज्ञान की सज्ञा दी गई है। अधिकाशतः वे स्वप्न होती है। पार्श वा लांछन सपं है बhि सुपाचं का देकर मार्गदर्शन करती हैं ऐसा मत्रविदो का अनुभव है। नद्यावर्त । पुराण मे तो इतना ही मंकेत है कि धरणेन्द्र ने उनसे जुड़े मत्रो की सख्या भी यहत अधिक। वे रक्तवर्ण फणामंडप तान दिया था किंतु कवियो, कलाकारों, भक्तो हैं जब कि धरणेन्द्र श्यामवणं है। भवनवामी देवी पद्मावती आदि ने अपने-अ.ने रंग भर दिये । कही-कही नो, यारह और पानाथ का सबध प्राचीनकाल से है । इसे हिदू या या हजार फण) की योजना भी पाई जाता है। कनाटक बैड तांत्रिक प्रभाव बताना अनुचित है। उसकी प्रबलता केबीजापर नगर के पास दरगान नाम के एक स्थान के तो ईसा के लगभग एक हजार वर्ष बाद हुई थी। जैन के पार्श्वनाथ मन्दिर मे सहसफणो सुन्दर पार्श प्रतिमा है। ये रागी है और जैन में वीतराग की पूजा का विधान है। उनके फणों से दूध इस तरह निकलता है कि पार्श्वनाथ
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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