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________________ चितन के लिए: ८. पाश्र्वनाथ और पद्मावती 7 श्री राजमल जैन केरल के जैन मन्दिरों में पाश्वनाथ की प्रतिमाएं हर पाश्वं का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनका जन्मस्थान पर पाई जाती हैं। जहां प्रतिमा उकेरी गई हैं वहां स्थान आजकल की वाराणसी के भेलपुर नामक मुहल्ले में भी पार्श्वनाथ की प्रतिमा अवश्य अकित पाई जाएगी। विद्यमान है। जैन यानी आज भी उस स्थान की वंदना इसी प्रकार खुदाई मे प्राप्त मूर्तियों में पार्श्वनाथ की प्रति- करते हैं। उनके पिता वाराणसी के राजा अश्वसेन थे। मायें ही अधिक प्राप्त हुई हैं। पद्मावती देवी पार्श्वनाथ उनकी कांता का नाम वामादेवी था। कुछ लेखक या की यमी या शासनदेवी हैं। पार्श्वनाथ की मूर्ति के साथ आख्यान उनके पिता का नाम विश्वसेन और माता का या अलग प्रतिमा के रूप में पद्मावती का अंकन भी नाम ब्राह्मीदेवी भी बताते हैं किन्तु सबसे अधिक ज्ञात सामान्यतया पाया जाता है। केरल मे वे अब भगवती के और प्रचलित नाम अश्वसेन और दामादेवी ही है। बौद्ध रूप में पूजी जाती हैं। उनके मन्दिर भगवती के मन्दिरों साहित्य मे भी राजा अश्वसेन का उल्लेख मिलता है । के रूप में परिवर्तित कर दिए गए हैं ऐसा कुछ विद्वानों उनका गोत्र काश्यप और वश उरग था। उरग का अर्थ का मत है । जैसे कल्लिल और तिरुच्चारणट्टमल के भग- है-उर अर्थात् पेट के बल पर गमन करने वाला यानी वती मन्दिर । नाग । इसका अर्थ यह है कि वे नागवंशी थे या नाग जाति पार्श्वनाथ जैनों के तेईसवें तीर्थंकर हैं। वे केवल में उत्पन्न हुए थे। उनके पैर मे सर्प का चिह्न भी जैन पौराणिक देवता नही हैं। वे इस भूतल पर सचमुच जन्मे कथाओ मे वणित है। उनके वश की राजकीय ध्वजा पर थे। उन्होंने सत्य, अहिंसा प्रादि का उपदेश दिया था। भी नाग का अंकन था। पावं का शरीर नौ हाथ ऊंचा उनकी स्मृति में आज भी बिहार का एक पर्वत 'पारसनाथ था। उनके जीवन की एक निम्नलिखित घटना की स्मृति हिल' कहलाता है। इसी नाम का एक रेलवे स्टेशन भी मे सर्प फणावलो उनकी प्रतिमाओ के साथ जुड गई। है। उनकी वास्तविकता का इससे बड़ा और क्या प्रमाण तीर्थकर पार्श्वनाथ का जीवन अनेक काव्यो, पुराणों हो सकता है। इसके अतिरिक्त, बौद्ध साहित्य में उनसे आदि का विषय है। दिगम्बर ग्राम्नाय के ग्रन्थो में संबंधित उल्लेखों आदि के आधार पर हरमन याकोबी ने तिलोयपण्णत्ति और आचार्य गुणभद्र का उत्तरपुराण इनमे उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध की है। रा. राधाकृष्णन ने प्रमुख हैं। यह पुराण कर्नाटक के बकापुर नामक स्थान मे भी उन्हें ऐतिहासिक व्यक्तित्व माना है। ईस्वी सन् ८६८ मे पूर्ण हुप्रा था जब कि राष्ट्रकूट राजा तीर्थकर पार्श्व का जन्म आज १९६१ से २८६८ वर्ष अकालवर्ष राज्य कर रहा था। श्वेताम्बर ग्रन्थों मे कल्पपूर्व हुआ था। इस गणना का आधार इस प्रकार है- सूत्र और आचार्य हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र अन्तिम और चौबीसवें तीर्थंकर महावीर का निर्वाण ईसा प्रमुख है जिसमे कि सठ श्रेष्ठ पुरुषो का चरित्र वणित से ५२७ वर्ष पूर्व हुआ। उनसे २५० वर्ष पूर्व पारसनाथ है। दोनो सप्रदायों में मुख्य अतर पावं के विवाह का हिल पर पार्श्वनाथ का निर्वाण जैन परम्परा मे मान्य है। लेकर है। दिगम्बरों के अनुसार पावं के विवाह का उनकी आयु १०० वर्ष थी। इस प्रकार--.६६ +५२७+ प्रस्ताव तो आया था किन्तु उन्होने उसे अस्वीकार कर २५०+१००२८६८ वर्ष का योग आता है। दिया था। श्वेतांबर मान्यता इसके विपरीत है। उसके x लेखक की अप्रकाशित पुस्तक 'केरल में जैन मम्' का एक अध्याय ।
SR No.538045
Book TitleAnekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1992
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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